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________________ 404500 405 श्री कौशलिक अर्हन् ऋषभदेव अब इस अवसर्पिणी में धर्म के प्रवर्तक होने से परम उपकारी ऐसे ऋषभदेव प्रभु का चरित्र विस्तार से वर्णन किया जा रहा है। (१९०) उस काल और उस समय में कौशलिक (यानी कोशला नगरी में जन्मे हुए) ऐसे अर्हन् श्री ऋषभदेव प्रभु के चार कल्याणक उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में हुए और पांचवा कल्याणक अभिजित् नक्षत्र में हुआ। वह इस प्रकार उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में श्री ऋषभदेव प्रभु सर्वार्थसिद्धि नाम के पांचवे अनुत्तर महाविमान से च्यवित हुए, च्यव करके गर्भ में आये । यावत् ऋषभदेव प्रभु उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे, उन्होंने उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में दीक्षा ली, उनको उत्तराषाढा नक्षत्र में केवलज्ञान व केवलदर्शन उत्पन्न हुआ और अभिजित् नक्षत्र में मोक्ष में गये । (१९१) उस काल और उस समय में अर्हन् कौशलिक ऋषभदेव जो इस ग्रीष्मकाल का चौथा मास, सातवाँ पक्ष यानी आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की चौथ की तिथि में, जहाँ देवों की स्थिति तेंतीस सागरोपम की है, ऐसे सर्वार्थ सिद्ध महाविमान से अन्तर रहित च्यव करके इसी जंबुद्वीप नाम के द्वीप में भरत क्षेत्र में, इक्ष्वाकु नाम की भूमि में (क्योंकि उस समय गाँव नगर • आदि नहीं थे ) नाभि कुलकर की मरूदेवा भार्या की कुक्षि में मध्यरात्रि में, और देव संबंधी आहर का त्याग करके यावत् देव संबधी भव का त्याग करके और देव संबधी काया का त्याग करके, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चन्द्र का योग प्राप्त होने पर, गर्भ के 155 ation International For Private & Personal Use Only 405014054050040
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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