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________________ श्री अरिष्ट नेमिप्रभु को केवलज्ञान होने के दो वर्ष पश्चात् निर्वाण मार्ग प्रारंभ हुआ याने उनकी पर्यायंतकृद् भूमि हुई। (१६८) उस काल और उस समय में अर्हन् श्री अरिष्ट नेमिप्रभु तीन सौ वर्ष तक कुमारावस्था में रहे, चोपन Q रात-दिन छद्मस्थ पर्याय में रहे संपूर्ण पूरे नहीं कुछ कम सात सौ वर्ष तक केवली स्थिति में रहे । इस प्रकार संपूर्ण सात सौ वर्ष तक श्रामण्य पर्याय को पाल कर उन्होंने अपना एक हजार वर्ष तक का आयुष्य पाकर वेदनीय, आयुष्य, नाम और गौत्र कर्म ये चार कर्म संपूर्ण क्षीण हो गये तब दुःषम सुषमा नाम की अवसर्पिणी बहुत सारी व्यतीत होने पर जब ग्रीष्म ऋतु का चौथामास आठवा पक्ष याने आषाढ़ सुदि आठम के दिन उज्जित शैल के शिखर पर उन्होंने दूसरे पांच सौ छत्रीस अणगारों के साथ निर्जल मासखमण तप तपकर के जब चित्रानक्षत्र का योग आने पर रात के पूर्व और पिछे का भाग जुडने पर मध्य रात में पद्मासन में बैठे हुए काल धर्म पाये, यावत् सर्व दुःख से मुक्त हुए । (१६९) अर्हन् अरिष्ट नेमिप्रभु के निर्वाण काल से चौरासी हजार वर्ष बीत जाने पर पंचासी हजार साल के भी नौ सौ वर्ष व्यतीत हुए । और पंचासीवे हजार के दसवे सैके का यह अस्सीवा संवत्सर काल जा रहा है। Niction International For Private & Personal Use Only 144 40 1500 40 500 40 500 1400
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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