________________
१६६) अर्हन् श्री अरिष्ट नेमिनाथ के अठारह गण और अठारह गणधर थे । अर्हन् श्री अरिष्ट नेमिनाथ के वरदत्त ॐ विगेरे अठारह हजार साधुओं की, आर्य यक्षिणि विगेरे चालीस हजार आर्याओं याने साध्वियों की उत्कृष्ट संपदा हुई & । नंद विगेरे एक लाख और उगणसितरे हजार श्रावकों की, महासुव्रता आदि तीन लाख छत्तीस हजार श्राविकाओं की, ★ जिन नहीं किन्तु जिनके समान तथा सर्व अक्षरों के संयोगों की अच्छी तरह से जानने वालें ऐसे चार सौं चौदह पूर्वियों १६३) उस समय और उस काल में वर्षा ऋतु का प्रथम महीना दूसरा पक्ष यानी श्रावण महीने का शुक्ल पक्ष में समय
श्रावण की, पन्द्रह सौं अवधिज्ञानियों की, पन्द्रह सौं केवल ज्ञानियों की, पन्द्रह सौ विक्रिय लब्धिवालों की, एक हजार - विपुलमति ज्ञानवालों की, आठ सौ वादियों की, और सोलह सौ अनुत्तरोंपपातिकों की उत्कृष्ट संपदा हुई । इनके पन्द्रह 9 सौ श्रमण याने साधु और तीन हजार साध्वियो सिद्ध हुई।
(१६७) अर्हन श्रीअरिष्ट नेमि के समय में दो प्रकार की अंतकृद् भूमि हुई। अर्थात श्री नेमिनाथ प्रभु के शासन में मोक्षगामियों के मोक्ष में जाने के काल की मर्यादा दो प्रकार से हुई। वह इस प्रकार युगांतकृद् भूमि व पर्यायंतकृद् भूमि * । अर्हन् श्रीअरिष्ट नेमिप्रभु के पश्चात् आठवे युगपुरूष तक निर्वाण का मार्ग चला यह उनकी युगान्तकृद् भूमि थीं। अर्हन
00000000000