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________________ 3000000000 柳先初步 श्री नेमिनाथ प्रभु का चरित्र १६१) उस समय और उस काल में अर्हन अरिष्टनेमि के पांच प्रसंग चित्रा नक्षत में हए। वे इस प्रकार से थे:अर्हन् अरिष्ट नेमिनाथजी का च्यवन चित्रा नक्षत्र में हुआ, वे च्यवकर चित्रा नक्षत में जन्मे, इत्यादि नक्षत्र के पाठ सह अन्य प्रसंगो के साथ चित्रा में उनका परिनिर्वाण हुआ । १६२) उस समय और उस काल में अर्हन् अरिष्टनेमि वर्षा ऋतु का चतुर्थ मास, सातवॉ पक्ष यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की बारस को जहाँ देवों की उत्कृष्ट स्थिति बतीस सागरोपम की है। ऐसे अपराजित नाम के महाविमान से तुरन्त ही च्यवकर यहॉ ही जम्बनाम के द्वीप में भरत क्षेत्र के शौर्यपुर नगर में समुद्र विजय राजा की पत्नी शिवादेवी की कुक्षि में मध्य रात्रि में चित्रा नक्षत्र में चन्द्रमा का योग प्राप्त होने पर गर्भ के रूप में उत्पन्न हुए यहाँ शिवादेवी माता का चौदह स्वप्न देखना, कुबेर की आज्ञा से तिर्यग् जुंभक देवों का धनवृष्टि करना इत्यादि सर्व वृतान्त श्री महावीर प्रभु की तरह जानना । १६३) उस समय और उस काल में वर्षा ऋतु का प्रथम महीना दूसरा पक्ष यानी श्रावण महीने का शुक्ल पक्ष में समय
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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