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________________ 5 प्राप्त करके कुल सो वर्ष का अपना आयुष्य पालकर वेदनीय, आयु, नाम, और गोत्र का क्षय होने पर दुःषम ॐ सुषमा नाम की अवसर्पिणी बहुत सारी बीतने पर, वर्षा ऋतु का प्रथम महीना, दूसरा पक्ष याने श्रावण शुक्ल आठम के दिन संमेत शैल के शिखर पर अपने सहित चोतीस याने तेतीस अन्य और स्वंय चोतीसवे पुरूषादानीय अर्हन पार्श्व निर्जल मासखमण का तप कर चढ़ते पहोर, विशाखा नक्षत्र का योग आने पर लम्बे 卐 रक्खे हैं हाथ जिन्होंने ऐसे ध्यान में रहे हुए काल धर्म पाये यावत् सर्व दुःखो से मुक्त बने । 000000000000 OF卐000000000 १६०) पुरुष प्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ के निर्वाण काल से बारह सौ साल व्यतीत हुए और तेहरवे सैके का तीसवॉ साल (संवत्सर) काल चल रहा है। याने श्री पार्श्व प्रभु के निर्वाण काल से बारह सौ तीसवें साल श्री कल्पसूत्र पुस्तका रूढ हुआ अथवा सभा समक्ष पढा गया । HEL Only For Private Personale i on international
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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