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________________ 405 1 40 'पर्याय' यानी प्रभु का केवलीत्व प्राप्तिकाल । उसमें जो मोक्षगामियों का मोक्ष में जाने का काल, वह पर्यायान्तकृद्भूमि कहा जाता है। श्रमण भगवान महावीर की तीसरे युग पुरुष तक युगान्तकृद्भूमि हुई अर्थात प्रभु से प्रारंभ करके उनके पट्टधर तीसरे पुरुष ऐसे श्री जंबुस्वामी तक मोक्ष चालु रहा। यह युगान्तकृदभूमि श्री जंबूस्वामी तक ही चली उसके बाद बंध हो गई। चार साल तक का है केवली पर्याय जिनका ऐसे श्री महावीर प्रभु होने पर किसी केवली ने संसार का अन्त किया याने भगवान के केवली बनने के चार वर्ष मुक्ति मार्ग प्रारंभ हुआ और श्री जंबुस्वामी तक चलता रहा। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर तीस वर्ष तक गृहस्थावास में रहकर, बारह वर्ष और साढ़े छः महीने तक छद्मस्थ पर्याय पालकर, तीसवर्ष से कुछ कम यानी उन्तीस वर्ष और साढे पांच महीने तक केवली पर्याय पालकर, कुल • मिलाकर बयालिस साल तक श्रामण्य पर्याय (चारित्र पर्याय पालकर), वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र ये चार भवोपग्राही कर्म क्षीण होने पर, इस अवसर्पिणी में दुषम सुषमा नाम का चौथा आरा बहुत बीतने के बाद, चोथा आरा कितना शेष था, तब प्रभु मोक्ष में गये? यह बताते है-चौथे आरे के तीन साल और साढ़े आठ महिने अवशेष रहने पर, मध्यम पावानगरी में, हस्तिपाल 'नामक राजा के कारकूनों की सभा में याने कार्यालय कर्मचारियों के कार्यालय में, राग-द्वेष की सहायता से रहित होने से अकेले यानी राग-द्वेष रहित, और श्रमण भगवान महावीर कैसे थे ? अद्वितीय याने जिस तरह ऋषभदेवादि तीर्थंकर दस हजार विगेरे परिवार के साथ मोक्ष में गये, वैसे भगवान महावीर अकेले ही मोक्ष में गये इसलिए अद्वितीय याने एकाकी ऐसे श्रमण 121 ation Internat 40 500 40 500 405
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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