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________________ १४१) ढ़ाई द्विप में और दो समुद्र में रहनेवाले, मनवाले, संपूर्ण पर्याप्तिवाले ऐसे पंचेन्द्रिय प्राणियों के मनोगत विचारों को जान सके ऐसे विपुलमति ज्ञानी श्रमण याने साधुओं की संख्या थी। १४२) देव मनुष्य और असुरों की सभाओं में वाद-विवाद करते पराजय को प्राप्त न करे ऐसे चारसो वादिओं की याने शास्त्रार्थ करने वालों की उत्कृष्ट संपदा हुई। १४३) श्रमण भगवान महावीर के सातसो शिष्य और चौदहसो शिष्याएं मोक्ष में गई। १४४) श्रमण भगवात महावीर के अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाले आठसो मुनि थे अर्थात् कालधर्म पाकर के अनुत्तर विमान में देव के रुप में उत्पन्न होकर, वहाँ से आय पूर्ण होने पर मनुष्यपने को प्राप्तकर के मोक्ष में जाने वाले आठ सो मनि थे । वे कैसे थे ? गति याने आने वाली मनुष्यगति में मोक्ष प्राप्ति लक्षण कल्याणकारी, देव भव में भी वे वीतराग प्रायः होने से देव भव में भी कल्याणकारी और इसीलिए आगामी भव में सिद्ध होने से आगामी भव में भी कल्याणकारी ऐसे आठ सो मुनि थे यानी प्रभु को अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाले मुनियों की उत्कृष्ट संपदा इतनी हुई । १४५) श्रमण भगवान महावीर के समय में मोक्षगामियों का मोक्ष में जाने का काल दो प्रकार से हुआ। वह इस तरह। १) युगांतकृद्भूमि व २) पर्यायान्तकृद्भूमि। __'युग'- यानी गुरु, शिष्य, प्रशिष्यादि क्रमानुसार वर्तते पट्टधर पुरुष। उन से मर्यादित जो मोक्षगामियों का मोक्ष में जाने का काल, वह वह 'युगान्तकृद् भुमि कहा जाता है। 120 वहाँ से आयु व भव में भी यानी प्रभु को का मोक्ष 他愛她 देव भव में भी कल्याणकारी । वे कैसे थे ? गति याने यानी प्रभु को अनुतर wwwjainelibravart
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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