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सर्व प्रकार से परिपूर्ण ऐसा केवलज्ञान और केवलदर्शन प्रगट हुआ। 37 १२१) उसके बाद वो भगवान अरिहंत बने, जिन, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हुए। अब भगवान देव, मनुष्य और
असुर सहित लोक के जगत के सर्व पर्याय जानते और देखते है-संपूर्ण लोक में सभी जीवों के आगमन-गमन 3 स्थिति, च्यवन, उपपात उनका मन मानसिक संकल्प-खान-पान, उनकी अच्छी बुरी प्रवृतियों, उनके ॐ भोगेपभोग, उनकी जो जो प्रवृति प्रगट और अप्रगट उन सबको भगवान जानते और देखते है। अब भगवान
अरिहंत बने जिससे उनसे किसी भी प्रकार की बात अप्रगट रहे ऐसी नहीं थी। उनके पास करोड़ देव निरंतर है सेवा करने हेतु रहने लगे अब उन्हें एकान्त रहने का नहीं बन सकता। इस प्रकार से अरिहंत बने भगवान उस +समय में मानसिक-वाचिक और कायिक प्रवृत्तिओं में बर्तते हुए समग्र लोक के सभी विचारों को देखते और
जानते विचरण करने लगे।
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