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________________ श्रीकल्पमुत्र कल्प मञ्जरी श्रमण-ब्राह्मण-कृपण-ननीपक-भिक्षोण्डका-ऽगारस्थेभ्यः, तत्र-श्रमणा: शाक्यादयः, ब्राह्मगाः प्रसिद्वाः, कृपणाःदीनाः, वनीपकाम्याचकाः, भिक्षोण्डका भिनाजीविनः, अगारस्थाःगृहस्थाचेति तेभ्यः, विच्छईयतःभोजनवसनादि दत्तः, दायादेषु पैतृकसम्पत्तिभागिषु दायं-सम्पत्ति पर्याभाजयतः परितो वण्टयतः, पर्याभाज्य% दायादेषु सम्पत्ति परिवण्ट्रय, मित्र ज्ञाति-वजन-सम्बन्धि-परिजनान् भोजयतः, भोजयित्वा मित्र-ज्ञातिस्वजन-सम्बन्धि-परिजनसमक्षम् इदमेतद्रूपंक्ष्यमागलक्षणं वचनं वदनः-यत्प्रभृति यस्मात् कालादारभ्य च खलु अस्माकम् अयं दारकःबालकः गर्भ व्युत्क्रान्ता गर्ने समागतः, तत्प्रभृति तस्मात् कालादारभ्य च खलु इदम् अस्माकमेतत् कुलं विपुलेन हिरण्येन रजतेन, सुवर्णन, धनेन-गवाचगजादिना, धान्येन= व्रीहिशालियवगोधूमादिरूपेण, विभवेन=निया-आनन्देनेत्यर्थः, 'विभवो धननिवृत्त्योः' इति हैमः, तथा-ऐश्वयेण धनाधिपतित्वेन जनाधिपतित्वेन वा, ऋद्वयासम्पत्या, सिद्धद्या-अभिलपितवस्तुपाप्स्या, समृद्धया-प्रव टीका व भगवती नामकर बुलाया-निमंत्रित किया। उन्हें निमंत्रित करके बहुत-से शाक्य आदि श्रमणों, ब्राह्मणों, कृपणों-दीनों, वनीपकों-याचकों, भिक्षोण्डो-भिखारियों और गृहस्थों को भोजन-वसन आदि का दान दिया। जो लोग पैत्रिक सम्पत्ति में भागीदार थे, उन्हें सम्पत्ति का बँटवारा किया। बँटवारा करके मित्रों, ज्ञातिजनो, स्वजनों, संबंधियों और परिजनों को भोजन कराया। भोजन कराकर मित्र, ज्ञाति, स्वजन, संबंधी और परिजनों के सामने आगे कहे जानेवाले वचन कहे-'जब से हमारा यह बालक गर्भ में आया है, तब से लेकर हमारा यह कुल विपुल हिरण्य से-चांदी से, सुवर्ण से-सोने से, धन से, गाय घोड़ा आदि से, धान्य से-त्रीहि, शालि, जौ, गेहूँ आदि से, विभव से-आनन्द से, ऐश्वर्यसे-धन या जन के अधिपतित्व से, ऋद्धि सेसम्पत्ति से, सिद्धि से-इष्ट वस्तुओं की प्राप्ति से, समृद्धि से-बढती हुई सम्पत्ति से, सत्कार से-जनता I૮૭ી ભગવાનના જન્મ-નિમિત્તે વેરભાવ ઉપશાંત થતાં, સર્વત્ર આનંદ-મંગળ વ્યાપી રહ્યો, અને તે આનંદને પ્રદર્શિત કરવા ગરીબ-ગુરબા વિગેરેને પણ વિપુલ પ્રમાણમાં મિષ્ટભોજન કરાવી તેમને દરેક રીતે સંતેષવામાં આવ્યાં. २९५ हेता यही, सुपए ता सोनु, धन डेता गाय-धारा-मेंस माना घर, अशा गोष, છેધાન્ય કહેતાં વ્રીહિ-શાલિ-જવ-ઘઉં વિગેરે, વિભવ એટલે આનંદ, ઐશ્વર્ય એટલે ધન અને માનવ સમુદાયનું શિવ અધિપતિપણું, અદ્ધિ એટલે સંપત્તિ, સિદ્ધિ એટલે ઈષ્ટ વસ્તુ એની પ્રાપ્તિ, સત્કાર એટલે જનતા દ્વારા પ્રાપ્ત થયેલ PRyw.jainelibrary.org.
SR No.600024
Book TitleKalpasutram Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1959
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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