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________________ कल्प मञ्जरी टीका पात्रं न तापयति नैव मलं प्रसूते, स्नेहं न संहरति नैव गुणान् क्षिणोति। द्रव्यावसानसमये चलतां न धत्ते, पुत्रोऽयं कुलगृहे किल कोऽपि दीपः ॥१॥ एष लोकोत्तरगुणगणयुतः सुतः प्रभूतप्रमोदं जनयति । अपि च शीतलं चन्दनं प्रोक्तं ततश्चन्द्रः सुशीतलः। चन्द्र-चन्दनतः शीतो महान् नन्दनसङ्गमः ॥२॥ "जो पात्र को संतप्त नहीं करता, मल को उत्पन्न नहीं करता, स्नेह का संहार नहीं करता, गुणों का नाश नहीं करता और द्रव्य के विनाश काल में अस्थिरता को प्राप्त नहीं होता है, ऐसा यह पुत्ररूप दीपक, कुलरूपी गृह में कोई विलक्षण ही दीपक है" ॥१॥ इति । ___ यह लोकोत्तर गुणगणों से युक्त पुत्र बहुत आनन्ददायी होता है। और भी कहा है-- ___ चन्दन शीतल कहा गया है, उससे भी शीतल चन्द्र है, और चन्द्र-चन्दन से भी महान् शीतल पुत्र का स्पर्श है ॥१॥ मिसरी मीठी होती है, उससे भी मीठा अमृत होता है, और उससे भी मीठा पुत्र का स्पर्श होता है ॥२॥ જે પાત્રને સંતપ્ત કરતું નથી, મલને ઉત્પન્ન કરતો નથી. સ્નેહનો નાશ નથી કરતે, ગુણોને વિનાશ નથી કરતા, તેમજ દ્રવ્યના વિનાશ કાળમાં અસ્થિરતાને પામતા નથી, તે આ પુત્રરૂપ દી કુળરૂપી ઘરમાં કે ઈ. विक्षी छ. ॥१॥ इति।। આ લકત્તર ગુગોથી યુક્ત પુત્ર ઘણાજ આનન્દને આપવાવાળો હોય છે. વળી પણ કહ્યું છે ચંદન શીતળ કહેવામાં આવ્યું છે, તેમજ તેનાથી પણ શીતળ ચંદ્ર છે, અને ચંદ્ર તથા ચંદનથી પણ મહાન SourtainmManyा पशछ. ॥ २॥ त्रिशलाकृत-पुत्रप्रशंसा. OGEORROFROPEDGEOGRAM ॥७६॥ For Private & Personal Use Only Bw.jainelibrary.org
SR No.600024
Book TitleKalpasutram Part_2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1959
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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