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श्रीकल्प
मञ्जरी
॥ ९३॥
टीका
तं दुराशयं दिविषदं नमयितुं तत्पृष्ठमध्यासीन एवं प्रभुमंढगूढाशयज्ञस्तत्पृष्ठोपरि निजशरीरस्यास्फारं भारमारोपयत्। तेन स दुराशयो देवस्तारेण स्वरेण चीस्कृत्य पृथिवीतले निपतितः। ततः खलु देवानां जयध्वनिः मुराध्वनि समजनि । ततः खलु नतग्रीवः स देवः क्षामितदेवाधिदेवः पाप्तसम्यक्त्वः स्वकधाम माप्तः ॥०७०॥ ' टीका-'तए णं भगनं मागवीरे' इत्यादि। ततः नामकरणानन्तरं खलु सद्गुणनिकरैः सद्गुणस भगवान् महावीरः सौम्यकरैः आहादककिरणः धवलदलविलसद्वितीयाचन्द्र इव-धवलदले शुक्लपक्षे विलसन्-विराजमानो यो द्वितीयाचन्द्रः बालचन्द्रमाः स इ . तथा-गिरिकन्दराऽऽलीन:-पर्वतगुहास्थितः चम्पकवृक्ष इव वयसा क्रमेण संवर्धते । एवम् अनेन प्रकारेण स भगवान् महावीरो मयूरपक्षकाकपक्षशोभिभिः-मयूरपक्षसुशोभितेन सोचकर दुष्ट-आशय-वाले उस देव को नमाने के लिए, उसकी पीठ पर चढ़े-चढ़े ही, उस मूढ़ के गूढ़ आशय को जाननेवाले प्रभुने अपने शरीर को थोडा सा भारी कर दिया। इस कारण दुष्टाशय देव उच्च स्वर से चीत्कार करके भूतल पर गिर पड़ा। तब आकाश में देवों ने जय-जयकार की ध्वनि की। तत्पश्चात् नतग्रीव-भगवान् के चरणों पर गिरा हुआ वह देव भगवान् से अपना अपराध खमाया और सम्यक्त्व लाभ करके अपने स्थान पहुंचा । मू०७॥
टीका का अर्थ-'तए' इत्यादि । नामकरण के बाद भगवान महावीर क्रमशः अपने सदगुणों के समूह से उसी प्रकार बढ़ने लगे, जैसे शुक्लपक्ष में विराजमान द्वितीया का चन्द्रमा बढ़ता है, तथा वय से ऐसे बढ़ने लगे जसे पति की गुफा में स्थित चम्पक वृक्ष बढ़ता है। इस प्रकार वह भगवान् मयूर के पांखों
भगवतो बाल्यावस्थावर्ण
नम्.
આવું વિચારી, ભગવાને, આ દેવના સાન ઠેકાણે લાવવા માટે, તેની પીઠ પર બેઠા બેઠા, પિતાનું શરીરનું વજન વધારી દીધું, અસહ્ય ભારને લીધે, આ દેવ વાંકા વળી ગયો, ને રાડ નાખી, પૃથ્વી પર પટકાઈ ગયે.
सातभा , माशना देवाय ' या' शण्होनी घोषणा श. ही ५ मा देव, सग. વાનના ચરણમાં આવી નમી પડયો. ને થયેલ અપરાધની માફી માંગી. પિતાને મિથ્યાત્વભાવ તજી, સાચી સમજણું RSS स्वस्थान निहाय थयो. (सू०७०) हमार हान अर्थ -'तपणं' त्याlt. नाम४२५ पछी भगवान महावीर मश: पोताना सहशुशोना सभूक्षयी
એવી રીતે વધવા લાગ્યા કે જેમ અજવાળિયામાં બીજને ચન્દ્ર વધે છે. વળી પર્વતની ગુફામાં રહેલ ચમ્પક વૃક્ષ . જેમ વધે છે તેમ વયમાં વધવા લાગ્યાં આ રીતે તે ભગવાન મહાવીર પિતાના મહાન શક્તિમય સ્વરૂપને
॥१३॥
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