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________________ श्री कल्पसूत्रे ॥६७॥ 安安淇藏藏法 Jain Education International मूलम् कप्पर निर्माणं गामंसि वा जाव सपरिवत्वेवसि अबाहिरियसि हमेतगिम्हासु दो मासे वसित्तए । कप्पर निम्गथीणं गामंसि वा जाव सपरिक्खेवंसि सबाहिरियंसि हेमंतगिम्हासु चचारि मासे वसित्तए । कप्पर तस्थ अंतो दो मासे बाहिं दो मासे वसित्तए । कप्पर तत्थ अंतो वसमाणीणं अंतो, बाहिं वसमाणगं वाहिं भिक्खायरियाए अत्तिए ||म्र०११ ॥ छाया — कल्पते निर्ग्रन्थीनां ग्रामे वा यावत् सपरिक्षेपे अवाह्ये हेमन्तग्रीष्मयोद्वौ मासौ वस्तुम् । कल्पते निर्ग्रन्थीनां ग्रामे वा यावत्सपरिक्षेपे सवाद्यं हेमन्तग्रीष्मयोश्चतुरो मासान् वस्तुम् । कल्पते तत्र अन्तद्वैौ मासौ aa सौ वस्तुम् । कल्पते तत्र अन्तर्वसन्तीनाम् अन्तः, वहिर्वसन्तीनां वहिः भिक्षाचर्यायै अटितुम् ॥मू० ११॥ टीका – ' कप्पइ निम्गंथीणं ' इत्यादि । व्याख्या पूर्ववद् बोध्या । नवरम्--निर्ग्रन्थानां सपरिक्षेषे अवाये मूल का अर्थ --- साध्वियों को कोट से घिरे हुए कोट के बाहर वस्ती से रहित ग्राम आदि में हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में दो मास तक रहना कल्पता है । साध्वियों को कोट से घिरे हुए और बाहर वस्तीवाले ग्राम आदि में, हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में चार मास तक रहना कल्पता है। दो मास भीतर और दो मास बाहर रहना कल्पता है । भीतर रहनेवाली साध्वियों को भीतर ही और बाहर रहनेवाली साध्वियों को बाहर ही भिक्षा के लिए अटन करना कल्पता है ||मू०११ || टीका का अर्थ - - इस सूत्र की व्याख्या पहले के समान समझनी चाहिए । विशेषता यह है कि साधुओं મૂલના અ—સાધ્વીઓને, કાટવાલા કાટની બહારની વસ્તી વગરના ગામ આદિમાં હેમન્ત અને ગ્રીષ્મ ઋતુમાં બે મહિના સુધી રહેવાનુ ક૨ે છે. અને કાટવાલા બહારની વસ્તીવાલા ગામ આદિમાં ચાર મહિના સુધી રહેવું કહ્યું છે. તેમાં ગામમાં એ માસ અને તેની બહારની વસ્તીમાં બે માસ એ મહેમન્ત અને ગ્રીષ્મૠતુમાં यार भास सुधी साध्वीखने रहेवानुं ये छे. ने 'हार' मां रतां होय तेने 'महार' मांधी, भने 'शाम' માં રહેતા હોય તેને ગામ' માંથી જ આહાર લેવાનુ ક૨ે છે (સ્૦૧૧) ટીકાના અ—સાધુઓને માટે ફાટવાલા અને મહરની વસ્તીવાલા ગામ આદિમાં એક માસ સુધી For Private & Personal Use Only कल्प मञ्जरी टीका ॥६७॥ www.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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