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________________ मुत्रे टीका pre निकरेणेव भ्रमरसमूहसदृशेन भव्यवृन्देन भव्यप्राणिनां समूहेन, तरङ्गेणेवन्तरङ्गसदृशेन समभावेन इष्टानिष्टादिषु होला सर्वत्र साम्येन, इंसादिविहङ्गमैरिव इंसादिपक्षिसदृशैः संयतैः साधुभिः, पुष्पवाटिकाभिरिव पद्मसरोवरपालिस्थितश्रीकल्पपुष्पवाटिकातुल्याभिः मुद्भिः आत्मज्ञानसमुद्भूतममोदैः, स्वातिबिन्दुपातजनित-मुक्ताफल-शालि-शुक्तिसम्पुटैरिव-स्वाति कल्पबिन्दुनां स्वातिनक्षत्रदृष्टाम्बुदाम्बुबिन्दुनां यः पातः पतनं, तज्जनितानि यानि मुक्ताफलानि तैः शालन्ते शोभन्ते । मञ्जरी ॥५००॥ ये ते तथाभूता ये शुक्तिसम्पुटास्तैरिव तत्सदृशैः गणधरोपदेशवाक्य-जनित-स्वर्गापवर्गसुख-शालि-मुमुक्षुहृदयैः गणधराणां यत् उपदेशवाक्यम् भगवत्मरूपित-यथार्थ-तत्त्वोपदेशरूपं वचनं तजनितं यत् स्वर्गापवर्गसुखं तेन शालन्ते शोभन्ते यानि तानि तथाभूतानि यानि मुमुक्षुहृदयानि-मोक्षाभिलाषिणां चित्तानि तैस्तथाभूतैश्च परिकरितो युक्तः पद्मसरोवर इव विराजिष्यते शोभिष्यते । एवं-पद्मसरोवर इवासावपि सकलजगज्जीवयोनिजातस्यनियों से युक्त होता है, उसी प्रकार वह पच्चीस विमल भावनाओं से युक्त होगा। जैसे सरोवर मकरन्दफूलों के रस से युक्त होता है, उसी प्रकार वह षटकाय के जीवों की करुणा से कलित होगा। जैसे सरो • पदमवर भ्रमर-समूह से युक्त होता है, उसी प्रकार वह भव्य प्राणियों के समूह से सेवित होगा। जैसे-सरोवर सरोवरलहरों से व्याप्त होता है, उसी प्रकार वह इष्ट-अनिष्ट आदि में समताभाव से युक्त होगा। जैसे सरोवर हंस स्वमफलम्. आदि पक्षियों से सेवित होता है उसी प्रकार वह साधुओं से सेवित होगा। जैसे सरोवर पाल पर स्थित पुष्पवाटिकाओं से शोभित होता है, उसी प्रकार वह आत्मज्ञानजनित प्रमोद से विभूषित होगा । जैसे सरोवर स्वातिनक्षत्र में बरसे जल की बिन्दुओं से उत्पन्न हुए मोतिओं से सुशोभित शुक्ति (सीप) से सम्पन्न होता है, उसी प्रकार वह तीर्थकरमरूपित यथार्थ तत्व का उपदेश करने वाले गणधरों के वचन से जनित स्वर्गमोक्ष के सुख से शोभित होने वाले मोक्षार्थी जीवों के हृदय से सुशोभित होगा। इस प्रकार, अर्थात्-पद्मयुक्त નાએ વાળે થશે. જેમ સરેવર મકરન્દ (કૂલના રસોથી યુક્ત હોય છે તેમ તે છકાયના જીની કરુણાથી યુક્ત થશે. જેમ સરોવર ભમરાઓના સમૂહથી લેવાયેલ હોય છે, તેમ તેમના સમૂહથી લેવાયેલ હશે. જેમ સરવર લહેરેથી ન્યાપ્ત હોય છે તેમ તે ઈષ્ટ અનિષ્ટ આદિમાં સમતાભાવવાળો હશે. જેમ સરેવર હંસ આદિ પક્ષીઓથી સેવાય છે તેમ તે સાધુઓ વડે ॥५०॥ સેવાશે. જેમ સરોવર કિનારે રહેલી પુષ્પવાટિકાઓથી શોભે છે, તેમ તે આત્મજ્ઞાન-જનિત પ્રમાદથી વિભૂષિત થશે, જેમ સરોવર સ્વાતિનક્ષત્રમાં વર્ષેલાં જળના બિન્દુઓ વડે ઉત્પન્ન થયેલ મતીઓ વાળી છીપ વડે યુક્ત હોય છે, એજ જ રીતે તે તીર્થંકર-પ્રરૂપિત યથાર્થ તત્વને ઉપદેશ કરનાર ગણધરના વચનથી થનાર સ્વર્ગ–મોક્ષના સુખથી શોભા- તે OE Private & Personal use only Nw.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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