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________________ श्रीकल्प ॥४९८॥ १०-पउमसरोवरसुमिणफलं मूलम्-पउमसरोवरदसणेणं अमू विमलजलेणेव निम्मलमहिमाए, सीयलतयेव संतीए, माहुरिएणेव सोम्मभावेण, गंभीरिएणेव नाणाइगुणेग, कमलिणीहिविध विमलभावणाहि, मयरंदेणेव कारुण्णणं, भमरनिगरेणेव कल्पभविदेग, तरंगेणेव समभावेणं, इंसादिविहंगमेहि विव संजतेहि, पुष्फवाडियाहि विव मुयाहि, साइबिंदुपायजणिय- मञ्जरी मुत्ताहल-सालि-मुत्तिसंपुडे हि विव गणहरोवएसवक-जणिय-सग्गापवग्गमुहसालि-मुमुक्खुहियरहिं परिगरिओ टोका पउमसरोवरोविव विराइस्सइ, एवं सयलजगजीवजोणीजायस्स आधारभूओ भविस्सइ ॥मू० ४०|| १०-पद्मसरोवरस्वप्नफलम् छाया--पद्मसरोवरदर्शनेन असौ विमलजलेनेव निर्मलमहिम्ना, शीतलतयेव शान्त्या. माधुर्येणेव सौम्यभावेन, गाम्भीर्येणेव ज्ञानादिगुणेन, कमलिनीभिरिव विमलभावनाभिः, मकरन्देनेव कारुण्येन, भ्रमरनिकरेणेव भव्यवृन्देन, तरेणेव समभावेन, इंसादिविहङ्गमैरिव संयतः, पुष्पवाटिकाभिरिव मुद्भिः, स्वातिबिन्दुपातजनित-मुक्ता १०-पद्मसरोवर के स्वप्न का फल का अर्थ-'पउमसरोवरदसणेणं' इत्यादि। पद्मसरोवर के देखने से वह पद्मसरोवर के सदृश सरोवरहोगा। जैसे-सरोवर निर्मल जल से युक्त होता है वैसे ही वह निर्मल महिमा से युक्त होगा। इसी प्रकार स्वप्रफलम्. सरोवर की शीतलता के समान शांति से, मधुरता के समान सौम्यभाव से, गंभीरता के समान ज्ञानादि गुणों से, कमलिनियों के समान निर्मल भावनाओं से, मकरंद के समान करुणा से, भ्रमर-समूह के समान भव्य जीवों के समुदाय से, तरंगों के समान समभाव से, हंस आदि पक्षियों के समान संयतों से, पुष्पवाटिका के समान प्रमोद से, स्वातिनक्षत्र में गिरे हुए जलबिन्दुओं से उत्पन्न मोतियों से युक्त सीपों के ૧૦–૧મસરોવરના સ્વપ્નનું ફળ भूजन -"पउमसरोवरदसणेणं' त्यादि. पासवरन नवाथी त पभसश१२ वा यथे. सभ સરવર નિર્મળ પાણીવાળું હોય છે તેમ તે પણ નિર્મળ મહિમાવાળે થશે. એજ રીતે સરોવરની શીતળતા ॥४९८॥ જેવી શાન્તિથી, મધુરતા જેવા સમ્યભાવથી, ગંભીરતા જેવા જ્ઞાનાદિ ગુણેથી, કમલિનીએ જેવી નિર્મળ ભાવનાઆથી, મકરંજના જેવી કરુણુથી, અમરવૃન્દ જેવા ભવ્ય જીના સમુદાયથી, તરંગે જેવા સમભાવથી, હંસ આદિ પક્ષીઓના જેવા સંપમિયોથી, અપવાટિકા જેવા પ્રમાદથી, સાતિનક્ષત્રમાં નીચે પડતાં જળ બિન્દુઓથી પેદા થયેલ કોઈ पद्म नादि RE Jain Education In Sa r a
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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