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मोकल्प
कल्पमञ्जरी टीका
॥४९॥
म ताभ्यां सम्पन्नः युक्तः सन्, वैराग्यपवनप्रेरितं स्याद्वादध्वजम् अनेकान्तवादरूपपताका समुच्चालायष्यात-सम्यक् उडाययिष्यति ॥सू०३८॥
९-पुण्णकलससुमिणफलम् मूलम्-- पुण्णकलसदसणेगं अमू विमलसलिलेहि कलसो विव खमा-संति-माहरिय-ओदारिय-सोरियगंभीरिय-धेरिय-मदव-अजवाइगुणे पुणे मंगलमयत्तणओ सगललोग-मंगल-जणओ सगललोग-हिययकमला-हिहायगो पंचर्तिसय-वाणीगुण-पडिपुण्णो लोगाहिरामो धवलकित्ति-केवलणाण-केवलदसण-समलंकिओ जगहिययहरणपवणो सयलतित्थियाणं मुद्धोवरि विरायमाणो सयलजणाणमभिलसणिज्जो भविस्सइ ॥सू०३९॥
शस्वप्नफलम् छाया--पूर्णकलशदर्शनेन असौ विमलसलिलैः कलश इव क्षमा-शान्ति-माधुयौं-दार्य-शौर्य-गाम्भीर्यधैर्य-मार्दवा-ऽऽर्जवादिगुणैः पूर्णः मङ्गलमयत्वात सकललोकमङ्गलजनकः सकललोक-हृदयकमला-धिष्ठायकः पञ्चत्रिंशको प्रत्यक्षरूप से जानने वाले केवलज्ञान से तथा केवलदर्शन से विभूषित होगा। वैराग्यरूपी वायु से प्रेरित अनेकान्तवाद की पताका को फहराएगा |सू०३८॥
९-पूर्णकलश के स्वप्न का फल __ मूल का अर्थ-'पुष्णकलसदसणेगं' इत्यादि। पूर्ण कलश को देखने से, जैसे कलश निर्मल जल से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार वह बालक क्षमा, शान्ति, माधुर्य, औदार्य, शौर्य, गांभीर्य, धैर्य, मार्दव, __ आव आदि गुणों से परिपूर्ण होगा। मंगलमय होने के कारण सम्पूर्ण लोक के मंगल का जनक होगा।
मा पूर्णकलश
स्वमफलम्.
॥४९॥
તથા પરિણામ પર્યાયથી ભિન્ન અનન્ત પદાર્થોને પ્રત્યક્ષ રૂપથી જાણનાર કેવળજ્ઞાનથી તથા કેવળદશનથી વિભૂષિત થશે. શિક વળી વરા૫રૂપી વાયુથી પ્રેરિત અનેકાન્તવાદની પતાકાને ફરકાવશે (સૂ૦૩૮).
૯-પૂર્ણ કળશના સ્વમનું ફળ भूजन अर्थ-"पुण्णकलसदसणेणं" त्याहि. . शने नेपाथी, भ नि पालीथी परि डाय , तेम ते आ४ क्षमा, शान्ति, भाषुः, मोहाय, शीय), isli, या, भा, भा, भाल शुरया
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