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चरित्र
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चाहिये ।६५-६७४
पौष सुदी त्रयोदशी बुधवार संवत् १५३१ को इस शास्त्रकी रचना पूरी हुई ६८। ___जबतक पृथ्वी है, सुमेरु पर्वत है, जबतक सूर्यका मण्डल है, जब तक ग्रहादि तारे हैं, और जब तक सज्जनोंकी चेष्टा है, तब तक शान्तिनाथके चैत्यालयमें भक्तिपूर्वक बनाया हुआ यह सुखकारी तथा निर्मल शास्त्र स्थिर रहै ।६६। जबतक सुमेरु पर्वत, पृथ्वी, चन्द्रमा, सूर्य, और तारागण हैं, तबतक यह पापका नाश करनेवाला चरित्र जयवन्त रहै ७०। चार हजार साढे आठ सौ श्लोक जिसमें हैं, ऐसा यह प्रद्युम्नचरित्र श्री सर्वज्ञदेवके प्रसादसे निरन्तर जयवन्त रहै ।७१॥
इति श्रीसोमकीर्ति आचार्यकृत प्रद्युम्नचस्वि संस्कृतग्रन्थके नवीन हिन्दी भाषानुवादमें श्री नेमिनाथ, प्रद्युम्न शांब, तथा अनुरुद्ध, आदिके निर्वाणका सोलहवां सर्ग समाप्त हुआ।
[समाप्तोऽयं ग्रन्थः]
* दूसरी प्रतिमें ६५-६६ और ६८ नम्बरके श्लोक नहीं हैं।
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