________________
प्रान
चरित्र
माता के दुःखसे भरे हुए वचन सुनकर प्रद्युम्नकुमार जिसको कि प्रेमकी लालसा लग रही थी, विनयपूर्वक बोला. माता यदि तुझे मेरे बालकपनके कौतुक देखनेकी इच्छा है. तो मैं उन्हें दिखला सकता हूँ। मुझे कोई भी काम दुर्लभ नहीं है । मैं सब कुछ कर सकता हूँ।८२-८४। “लो मेरा बालकपन जो दूसरे लोगोंके लिये दुर्लभ है, देखो।” ऐसा कहकर कामकुमार क्षणभरमें छोटासा बालक बन गया, जिसके अङ्ग उपांग उत्तम थे, आकार सुन्दर था, जो सब लक्षणोंवाला था, ऊपरको पैर
और मुंह करके सोता था, भोला था, फूले हुए कमलके समान मुख था, चंचल हाथ पैरोंको हिलाता था, मुट्ठी बँधी हुई रखता था और लीला करता हुअा तथा थोड़ा थोड़ा मुस्कराता हुआ जमीनपर सरकता था।८४.८६७। इसप्रकारके बालकको देख माता बड़ी प्रसन्न हुई और उसे जल्द ही अपने हाथोंसे उठाकर दूध पिलाने लगी।८७। वह नाना प्रकारकी क्रीड़ा करनेमें चतुर बालक अपने आप धरती में बैठने लगा, खड़ा होने लगा, घुटनों तथा पैरों के बल से थोड़ा थोड़ा चलने लगा, माताके आगे उठ उठकर पड़ने लगा, हाथ पकड़के चलने लगा और फिर पृथ्वी पर गिरने लगा। इसके पश्चात् मणियोंके फर्श पर माताके हाथके आसरेसे पांवकी पैजनियोंका 'रुम झुम रुम झुम' शब्द करता हुआ चलने लगा। तोतली बोली बोलता हुआ माताका मन हरण करने लगा और क्षणक्षणमें बालकोंके योग्य नानाप्रकारके आभूषणोंसे शोभित होने लगा।८८-६१। धूलसे भरे हुए स्थानमें बहुत समय तक खेलने पर जब माताने बुलाया, तव बालक सारे शरीर को धूलसे भरे हुए तथा मुट्ठियों में भी धूल लिये हुए दौड़ा जाकर गले से लिपट गया और माताको अपूर्व सुख प्रदान करने लगा।६२-६३। इसप्रकारसे यादवोंकी लक्ष्मीसे विभूषित कुमार बहुत समय बालक्रीड़ा करके और फिर दूसरे
• मूल प्रतिमें यहां श्लोक संख्यामें गलती हो गई है। ८६ और ६७ के अङ्क दो बार लिख गये हैं।
LEASE
ME
TOPNE
Jain Educa
international
For Private & Personal Use Only
www.jadaibrary.org