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उल्लेख छे. वाचकवंशमां आ० कौडिन्यना शिष्यो स्थ० नागसूरि आ० पादलिप्तसूरि आ० स्कंदिला. चार्य, आ. वृद्धवादिसूरि थया छे. आ० खपुटाचार्य पासे श्री पादलिप्तपरिजीए विद्याभ्यास कर्या हतो।
आ. श्री पादलिप्त सूरि पोतानु आयुष्य अल्प जाणी श्री शत्रुञ्जय तीर्थ उपर आव्या. त्यां ३२ दिवस अनशन पाली कालधर्म पामी बीजा देवलोकमां गया ।
आवा महान युगपुरुषना रचेल निर्वाण कलिका ग्रन्थनु संपादन करवानी तक पलता घणो आनन्द अनुभव्यो छे. आ ग्रन्थनु पूर्व प्रकाशन श्री मोहनलाल भगवानदास झवेरीए संशोधन करेलु इन्दोर निवासी शेठ नथमलजी कनैयालाल रांका द्वारा वि० सं० १९८२ मां श्री मोहनलालजी जैन ग्रन्थमालाना ५ मा ग्रन्थरत्न तरीके प्रसिद्ध थयु हतु. ते द्वारा यथामति संशोधन करीने आ ग्रन्थ प्रसिद्ध थाय के. जैन संघमां आ ग्रन्थनु वाचन-मनन थतां आ विषयमा निपुणता साथे निर्मलता प्राप्त थाय एज अभिलाषा ।
वि. सं. २०३७ श्रावण शुक्ल ५ बुधवार आराधना भवन, विठल प्रेस रोड, सुरेन्द्र नगर (सौराष्ट्र)
पू. आ. श्री विजयकपूरसूरीश्वर पट्टधर हालारदेशोदारक
पू. आ. श्री विजयामृतसूरीश्वर विनेय
पं. जिनेन्द्रविजय गणी
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