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________________ विकट -निर्दोष आहार-पानी। विकृष्ट भक्त - जहां ग्राम की पंचायत बैठती है अथवा जहां लोग मिलकर बैठते हैं, वह स्थान, चबूतरा आदि । विगय -देखें, 'रस-विकृति'। विचार-भूमि - शौचादि के लिये निर्वद्य स्थान । विपुलमति - मनपर्यवज्ञान का भेद । इस ज्ञान से मन के भाव-विचार जाने जाते हैं। यह विशेष विशुद्ध होता है तथा कैवल्य-प्राप्ति तक स्थिर रहता है। विहार-भूमि - चैत्य, मन्दिर प्रादि का पवित्र स्थान । वृष्टिकाय - वर्षा, बूंदें या फुहारें। वेदनीय कर्म - देखिए, 'कर्म'। वैक्रियलब्धि - शरीर को छोटे-बड़े आदि विभिन्न रूपों में बदलने वाली शक्ति विशेष । वैक्रिय समुद्घात- शरीर को तथा शरीर-परमाणूयों को विशेष रूपों में बदलने के लिए की जाने वाली विशिष्ट प्रकार की प्रक्रिया। वैमानिक देव - श्रेष्ठ विमानों में उत्पन्न होने वाले देव विशेष । शुद्ध विकट - उबला हुअा गरम जल । श्रुतकेवली - चौदह पूर्वो का जानकार विद्वान् । षष्टितन्त्र - सांख्य तत्वज्ञान का ग्रन्थ, जिसमें साठ तत्वों का निरूपण हुपा है। संखडी -मिष्ट-पक्वान्न, मिठाई आदि जिस स्थान पर बन रही हो, अथवा भोज आदि का स्थान । संस्वेदिम - वृक्ष के पत्ते यादि को उबाल कर, उन पर छिटका जाने वाला ठंडा पानी । ( xxix ) www.iainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.600010
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
Publication Year1984
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationManuscript, Canon, Literature, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size11 MB
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