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भक्त-प्रत्याख्यान- भोजन एवं पानी अथवा भोजन मात्र का त्याग । भवनपति -एक विशेष प्रकार की देवजाति, जो अधोलोक के भवनों में रहती है। भाषा समिति - देखें, 'समिति' । मडम्ब -ग्राम-स्थल विशेष, जिसके चारों ओर एक योजन तक कोई गांव न हो। मण्डलीक -एक देश का अधिपति, राजा। मनपर्यवज्ञान - दूसरे के मन की अवस्था तथा भावों को जानने वाला ज्ञान । मनोगुप्ति - देखें, 'गुप्ति'। मारणान्तिक संलेखना- मरण पर्यन्त अनशन ग्रहण कर, शरीर, इन्द्रिय और कषायों को क्षीण करना । मुष्टि लोच - मुट्ठी भर कर सिर के बालों को उखाड़ना, लोच करना। यवनिका - पर्दा विशेष । रस-विकृति -जिन सरस खाद्यों एवं पेय-पदार्थों के सेवन से विकृति-विकार उत्पन्न होते हों उसे रस-विकृति
(विगय) कहते हैं । विगय नौ प्रकार की है-दूध, दही, मक्खन, घी, तेल, गुड़, मद्य, मधु और मांस । लोकान्तिक - एक विशेष देव जाति । इस जाति के देव ब्रह्मलोक के अन्त में रहते हैं और तीर्थंकर के दीक्षा
ग्रहण के समय पाकर जन-कल्याण के लिये उनसे प्रार्थना करते हैं। वचनगुप्ति - देखें, 'गुप्ति' ।
- वाद-विवाद, शास्त्रार्थ करने में निपुण तथा उसमें अपराजित रहने वाला। वानव्यन्तर - एक प्रकार के देव जो भूत-पिशाच के नाम से पुकारे जाते हैं । वासुदेव - तीन खण्ड का अधिपति, सम्राट् ।
Conjun
(xxviii)
वादी
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