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गुप्ति
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-विवेकपूर्वक प्रात्म-संयम, नियमन करना गुप्ति है। गुप्ति के तीन भेद हैं - १. मनोगुप्ति - मन
का संयम, २. वचन गुप्ति - वाणी का संयम, और ३. कायगुप्ति - शरीर का संयम । गोत्रकर्म -देखें, 'कर्म'। गोदोहासन - गाय को दोहते समय ग्वाला जिस आसन (प्रकार) से बैठता है, उस आसन को गोदोहासन
कहते हैं। चक्रवर्ती -छः खण्डों का सार्वभौम सम्राट् । चतुर्थभक्त -लगातार चार वक्त तक आहार आदि का त्याग, किंवा एक दिन का उपवास । चतुर्दशभक्त - लगातार चौदह वक्त तक आहार आदि का त्याग, किंवा छः दिन का उपवास । च्यवन -देवता एवं नारक के आयुक्षय को च्यवन कहते हैं अर्थात् देव और नारक की मृत्यु । च्युत -देव एवं नरक गति में मृत्यु प्राप्त करना। चतुर्दश पूर्व -जैन परम्परा के मूल अंग-शास्त्र बारह हैं। बारहवां अंग दृष्टिवाद है। दृष्टिवाद के अन्तर्गत
चौदह पूर्व पाते हैं। चौदह पूर्वो के नाम इस प्रकार हैं :- १. उत्पाद पूर्व, २. अग्रायणी पूर्व, ३. वीर्यानुवादपूर्व, ४. अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व, ५. ज्ञानप्रवाद पूर्व ६. सत्यप्रवाद पूर्व, ७. प्रात्मप्रवाद पूर्व, ८. कर्मप्रवाद पूर्व, ६. प्रत्याख्यान पूर्व, १०. विद्यानुवाद पूर्व, ११. कल्याणवाद पूर्व,
१२. प्राणावाय पूर्व, १३. क्रियाविशाल पूर्व, १४. लोकबिन्दुसार पूर्व । चतुर्दश पूर्वधर- चौदह पूर्वो का जिसे पूरा ज्ञान हो, उसे चतुर्दश पूर्वधर अथवा चौदह पूर्वी कहते हैं । चाउलोदक -चावल का धोवन । छट्ट भक्त - लगातार छ समय (वक्त) के पाहारादि का त्याग, किंवा दो दिन का उपवास (बेला)।
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