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कल्पसूत्र ३२८
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सेवि यणं परिपूए नो चेव णं अपरिपूए, से वि य णं परिमिए नो चेव अपरिमिए, [ से विणं बहुसंपण्णे नो चेव णं अबहुसंपणे ] | २५० वासावासं पज्जोसवियस्स संखादत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहित्तए पंच पाणगस्स अहवा चत्तारि भोयणस्स पंच पाणगस्स अहवा पंच भोयणस्स चत्तारि पाणगस्स । तत्थ णं एगा दत्ती लोणासायण मित्तमवि पडिग्गाहिया सिया, कप्पइ से तद्दिवसं तेणेव भत्तद्वेणं पज्जोसवित्तए, नो से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥२५१ ॥
वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा जाव उवस्सयाओ सत्तघरंतरं संखड सन्नियट्टचारिस्त इत्तए । एगे
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