________________
पमाणं वदति से य पमाणओ घेत्तव्वे । से य विन्नवेज्जा, से य विन्नवेमाणे लभेज्जा, से य पमाणपत्ते 'होउ, अलाहि' इति वत्तव्वं सिया। से किमाहु भंते ! एवईएणं अट्ठो गिलाणस्स । सिया णं एवं वयंत परो वइज्जा-'पडिग्गाहेहि अज्जो !' तुमं पच्छा भोक्खसि वा पाहिसि वा एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ गिलाणनीसाए पडिग्गाहित्तए ॥२३॥ __ वासावासं पज्जो० अत्थि णं थेराणं तहप्पगाराइं कुलाई कडाई पत्तियाइं थेज्जाइं वेसासियाइं सम्मयाइं बहुमयाइं अणुमयाइं भवंति, जत्थ से नो कप्पति अदठ्ठ वइत्तए 'अत्थि ते आउसो ! इमं वा २?'।
TOne
Comme
कल्पसूत्र
३२०
Bain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org