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यादि का जो सौहार्दपूर्ण सहयोग मुझे मिला है, एतदर्थ मैं इन सब का हृदय से आभारी हूँ और धन्यवाद देता हूँ ।
मैं, मेरे पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छालंकार हिन्दी आगमोद्धारक शान्तमूर्ति गीतार्थप्रवर श्रीजिनमरिण - सागरसूरिजी महाराज की कृपा और आशीर्वाद का ही फल मानता हूँ कि मेरे जैसा अर्धदग्धविदग्ध व्यक्ति भी कल्पसूत्र जैसे ग्रागम ग्रन्थ का सम्पादन एवं हिन्दी अनुवाद कर सका, अतः उनके श्रीचरणों में कोटिशः वन्दन !
म० विनयसागर
चैत्र शुक्ला, रामनवमी, २०३४
जयपुर
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