________________
कल्पसूत्र
२७८
Jain Education International
एते दोणि वि थेरा तिष्णि तिष्णि समणसयाई वायंति, थेरे मेअज्जे थेरे भासे एए दोणि वि थेरा कोडिन्ना गोत्तेणं तिण्णि तिष्णि समसयाई वायंति । से तेणं अट्टेणं अज्जो ! एवं बुच्चइ- समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, एक्कारस गणहरा होत्या ॥ २०२ ॥
सव्वे वि एते समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्कारस वि गणहरा दुवालसंगिणो चउद्दस पुव्विणो समत्तगणिपिडगधरा रायगिहे नगरे मासिएणं भत्ते अपाणएणं कालगया जाव सव्वदुक्ख पहीणा । थेरे इंदभूई, थेरे अज्जसुहम्मे सिद्धि गए महावीरे पच्छा दोणि वि थेरा परिनिव्वया ॥ २०३॥ जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरति, एते णं सव्वे अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स आवच्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा वोच्छिन्ना ॥ २०४ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org