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प्रति-परिचय-प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में मैंने मुख्यतया एक हस्तलिखित प्रति और दो मुद्रित पुस्तकों का उपयोग किया है । तीनों का परिचय इस प्रकार है :
१. हस्तलिखित प्रति :- राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर संग्रह की है। क्रमांक ५३५४ है। पत्र संख्या १३६ है। माप २८.५४११.३ सेन्टीमीटर है। मूल पाठ की पंक्ति ७ और अक्षर २६ हैं। अवचूरि सहित है। पत्र के चारों ओर संस्कृत भाषा में अवचूरि लिखी हुई है। पत्र के एक तरफ मध्य में प्राकृति दे रखी है और पत्र में दूसरी तरफ तीन डिजाइनें दे रखी हैं, जो आसमानी और लाल स्याही से तथा प्राकृति का मध्य स्वर्ण स्याही से अंकित है। बोर्डर में दो-दो लाल स्याही की लकीरों के मध्य में स्वर्ण स्याही की लाइन दी है। इस प्रति में पश्चिमी भारत की जैन चित्र शैली, मुख्यतः राजस्थानी जैन चित्रकला के कुल ३६ चित्र हैं, जो कि स्वर्ण प्रधान पांच रंगों में हैं । चित्र निम्नांकित पत्रों पर अंकित हैं :
पत्र १ब, २, ५, ७ब, ११, १५, २१ब, २२, ३७ब, ४२व, ४३, ४६ब, ५२, ५२ब, ६०ब, ६२ब, ६३ब, ६७ब, ६९ब, ७०ब, ७६व, ७७ब, ७९ब, ८३ब, ८४, ८५, ८८ब, ८६अ, ६३ब, ६४ब, ६५ब, १००ब, १०६म १०६व, १३३ब और १३४७ । लेखन सम्बत् वि० सं० १५६३ है। प्रति के अन्त में पुष्पिका इस प्रकार दी है :
स्वस्तिप्रद-श्रीविधिपक्षमुख्या - धीशाः समस्तागमतत्त्वदक्षाः । श्रीभावतः सागरसूरिराजा, जयन्ति सन्तोषितसत्समाजाः ।।१।। श्रीरत्नमालं किल पुष्पमालं, श्रीमालमाहुश्च ततो विशालम् । जीयाद् युगे नाम पृथग् दधानं, श्रीभिन्नमालं नगरं प्रधानम् ।।२।। ओएसवंशे सुखसन्निवासे, पाभाभिधः साधुसमा (मो)बभासे । भाति स्म तज्ज्ञो भुवि सादराज - स्तदङ्गजः श्री घुडसी रराज ॥३॥
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