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अभिगिह्णति-नो खलु मे कप्पइ अम्मापितोहिं जीवंतेहिं मुंडे भवित्ता अगारवासाओ अणगारियं पव्वइए ॥१॥
तते णं सा तिसला खत्तियाणी ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया तं गम्भं नातिसीएहिं नातिउण्हेंहिं नातितित्तेहिं नातिकडुएहि नातिकसाइएहि नातिअंबिलेहि नातिमहुरेहि नातिनिहिं नातिलुखेहि [नातिउल्लेहि नातिसुकेहिं] सव्वत्तुयभयमाणसुहेहि भोयणच्छायणगंधमल्लेहिं ववगयरोगसोगमोहभयपरित्तासा जं तस्स गब्भस्स हियं मियं पत्थं गब्भपोसणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहि सयणासणेहि पइरिक्कसुहाए मणाणुकूलाए विहारभूमीए पसत्थदोहला संपुण्णदोहला सम्माणियदोहला अविमाणियदोहला वोच्छिन्नदोहला ववणीयदोहला
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कल्पसूत्र १३८
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