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सेलपंडुरागारं (ग्रं० २००) रमणिज्ज-पेच्छणिज्जं थिर-लट्ठ-पउ?वट्ट-पीवर-सुसिलिटु-विसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबियमुहं परिकम्मिय-जच्चकमल-कोमल-माइय-सोभंत-लट्ठ-उठें रत्तुप्पल-पत्त-मउय-सुकुमाल-तालुनिल्लालियग्गजीहं मूसागय-पवर-कणग-ताविय-आवत्तायंत-वट्ट-तडिविमल-सरिसनयणं विसालपीवरवरोरु पडिपन्नविमलखधं मिउ-विसयसुहम-लक्खण-पसत्थ-विच्छिन्न-केसराडोवसोहियं ऊसिय-सुनिम्मियसुजाय-अप्फोडिय-नंगूलं सोमं सोमाकारं लीलायंत जिंभायंतं नहयलाओ ओवयमाणं नियगवयणमइवयंतं पिच्छइ सा गाढतिक्खग्गनहं सीहं वयणसिरीपल्लवपत्तचारुजीहं ३ ॥३६॥
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कल्पसूत्र
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