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________________ सं० तरंग वईकहा ॥५०॥ तो आयइ परिहीणा भवंति सिद्धा जइ वि होंति ॥७८|| जइ वि उवायारद्धा कजारंभा न चेव सिझंति । तो वि जणस्स मणुस्सो |तं चेव वयणं अयं 'मुंचइ ॥ ७९ ॥ कामसरतिक्खपहरनिवायसंताविओ वि किच्छगओ। कुलवंसायसमीरून मुयइ सो सप्पहं वीरो"|८०॥ एवं चेडीए समं तस्स कहाहि पडिरचहिययाहं । समइच्छियं न याणामि पउमजग्गावयं सुरं ॥८१॥ तो जह तह व व्हाया जिमिया चेडीए सह परिणि । धातीपरियणसहिया हम्मियतलयं समारूढा ॥८२॥ पवरसयणासणगया तहियं पिययकहापसंगेणं । अच्छामि अभिरमंती पढमपउसं पडिक्खंती ।। ८३ ॥ ससिमंथणे ये घरिणि ! सरयसिरीवल्लभे तहोयरियं । नहगागरंमि बूढं जोएहंसेहियं तहा महति ॥ ८४ ॥ दळूण मे वियं भति गाढयरं दूमहो मणविधाओ। मझं तिब्बो कामो वियरइ करवत्तमारिच्छो। ८५| कामवसा दुक्खत्ता तेणाहं गाढमाकुलसरीरा । इच्छं जीवियभिक्खं वयंसि ! विष्णेत्ति(मि) य जलियं ।।८६॥ वेसस्स मएमकामो वामो कामो य म अभिदवेइ । चंदेण कुमुयवयवयणवंधवेण धणिय अभिबूढो ।।८७॥ तस्स य वामग्गहणे ण दुइ तुझं पि महुरवयणेहिं । वायाहयजभनिहि पाणियं व हिययं संठाई ।।८८॥ नेहि ममं सारसिए दंसणे तण्हाइयं लहु तस्स | असई पियस्स वसहि कामेण विणासियचरित्ता(तं) ॥ ८९॥ तो भणइ चेडिया में रक्खसु कुलपवयं जसविसालं । मा कुणसु साहमामिणं मा होहिसि हासिया तस्स ॥१०॥ सो तुझं साहीणो दिण्णं से जीवियं तुमे चेव । परिहर अयप्पत्ति लभिहिसि तं गुरुपसाएणं ॥९१।। महिलाण चित्तसाहस विवेयरहियत्तणेण अहयंपि । कामेण तोरविया पुणो वि तं चेडियं बेमि ।।९२॥ "उच्छाहनिच्छियमती अगणियपडिवायदोमनिस्संको। साहमियो किर पावइ सिरिमउलपकालियं लोए" ॥९३।। सधस्स वणियगहिय १ अ. मुंचेइ । २ ण। ॥५०॥ Jain Education in For Private & Personal Use Only Inelibrary.org
SR No.600009
Book TitleTarangvaikaha
Original Sutra AuthorPadliptsuri, Nemichandrasuri
Author
PublisherJivanbhai Chotabhai Zaveri
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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