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________________ सं० तरंग बईकहा ॥२८॥ CUP कामजरो M वेजाणयणं तत्थ मिममि निसण्णा । कयमुत्ताहारउल्लाणं चित्तूण कंठहारो ॥ १७ ॥ नियत्तं विवाओ तह य कं विष्णय कण्णाण कुंडलजुयं देसीय करंडए तविया । तनया ससीसं सत्थं न य इच्छइ अच्छिउं तत्थ ॥१८-१९(१)।। जस्स करण गयाहं उजाणं सरसीव | जाउ ति। सो सत्तिवण्णरुक्खो दिट्ठो कुसुमेहि संछण्णो ॥२०॥ महिलाजणस्स उ विग्धो मा होजा उववर्णमि रमिउंति । आगमण कारणं तो न मए सत्ता उवकहियं (उ) ॥ २१ ॥ एवं निसम्म वयणं संभंतो अहियदुक्खिओ ताओ । अइरेयबद्धनेहेण पुत्तेहिंतो महं उवरि ॥२२॥ अम्माकहिए नायमि आणीओ नयविहण्णुओ वेजो। विजागुणेण जो नयरे सयले विक्खायकित्तीओ॥२३॥ उत्तमकुलप्पसूओ गंभीरो सीलपव्वयसमिद्धो । सुहहत्थो सिवहत्थो लहुहत्थो सत्थकुसलो य ॥२४॥ सो सम्बवाहिलक्खणनियाणनिग्गहपओगविहिकुसलो। पुच्छइ सुहासणत्थो विवरिअत्थं स मं तत्थं ॥२५॥ किं ते बाहइ बलियं जरोय सिरवेयणा यतं साह । एत्तियं तं वेलं जाते सव्वं पणासेमि ॥२६(१) ।। केरिसओ आहारो कल्लं आसी य अवि य ते अजिण्णं । निदावणय नयसामुदा कह ते रत्ती गता अजं ॥२७॥ कहिओ मे आहारो सारसियाय निसाय पअंतो। उववणे गमणय महं जाइस्सरणं विणा परिणि! | ॥ २८ ॥ द©ण पुच्छिऊण य आलोक्खेउं ममं च गहिय वेजो। मो जंपिउं पवत्तो सत्थमवत्था इमा कण्णा [एवं ॥२९(?) | लोय जिमियमेत्तो होइ जरो सिभिओ मुणेयव्यो। पित्तं जरो जस्तो जिण्णंते वाइओ होजा ॥३०॥ एतेसु तिसु वि कालेसु हवइ सो सण्णिवाइओ होइ । तस्स वि य पचलसेसो बहुया दोसा मुणेयव्वा ॥ ३१ ॥ दोसा अहवा तिण्णी एत्तो किर लक्खणाणि | सयराह । दीसंति जत्थ सो सन्निवायजरओ मुणेयग्यो ।॥३२॥ दंडकसपत्थरपहारदमपडणपेल्लणादीहि संलवइ जो विसेसेण सो उ १ अ० णयणमुदा। ACCIDCO ।। २८॥ Jain Education Treational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600009
Book TitleTarangvaikaha
Original Sutra AuthorPadliptsuri, Nemichandrasuri
Author
PublisherJivanbhai Chotabhai Zaveri
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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