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________________ | निययभव णमि पवेसो सं० तरंग- पहमइगयामो बहुविपणियपसाहिय(प)एसं ॥ ९॥ वायपरियत्तियपक्कमुहियं च पंकयवणं जहाफुल्लं । तह जणमुहप उमवणं च वईकहा अम्ह गत्त तहि जोयं ॥१०॥ आबद्धपंजलि समुञ्जओ जणो तत्थ रायमग्गंमि । अयासेवि य कंतं पम्मुफालाहिं दिट्ठीहिं ॥११॥ ॥ ७७॥ दमुटुं न तिप्पति जणो पियं पवासाहि आगयं संतं । घणसंकेयविमुकं चंदमिव समुट्ठियं सरए ॥१२॥ उट्ठा(बद्धा)वगं आसीसा जणस्स सबंभणस्स रायपहे। अंजलियाहुरगाणिया न पहुप्पइ गिहिउं रमणो ।। १३॥ बंभणसमणगुरुं वयातिएण सीसेण नमइ | पंजलिओ। अवयासेइ वयंसे सेसं आभासइ जणं वा ॥१४॥ सो एस चकवाओ ति चित्ते केई सविम्हिया पुरिसा । जो सेटिचित्तपट्टे वाहेण हओ मओ लिहिओ ॥ १५ ॥ जा चकवायजुाती चकार्य अणुमया तहिं लिहिया। सा गहवइस्स धूया जाया | भजा य एयस्स ।। १६ ॥ सत्थविहाणविणिम्मिया चित्तपणवा इहं पुणो किह ता। सुसमाहियं जुवलयं देव्वेण अहो इमं सुट्टु ॥१७॥ संघोत्ति केइ लट्ठो त्ति केइ अहो विणीओ नि । केइ मूरो त्ति अभिजाओत्ति य केइ बहुविजो सव्वइजो चि ॥१८॥ सो IN पवरो य मया पसंसिओ पिययमो बहुजणेणं । निययं भवणविमाणं कमेण पतो मए समयं ।।१९।। तत्थ भट्ठियपरितुट्ठपरियणा उवणीय अग्घकयपूओ। कयचुडुलीमंगलओ आसीवयाण परिच्छंतो ।। २० । दहिलायसुद्धपुप्फेहि तत्थ कयविउलदेवतापूयं । विरइयवंदणमालं सकमलकलसुजलद्दारं ।। २१ ॥ तं सो भवणमइगो सहमावि य कोट्ठलटे। पुण्णमणोरहसुमणो मए समय समुत्तिण्णि ॥२२(१)। अप्पकयदोसलजियसमिया तो तहिं अइगयाह । ससुरकुलस्स विसालं जणाकुलं अंगणं रम्मं ॥ २३ ॥ सबकुलेण समग्गो तत्थ य पुवागओ गहबई मे। मत्थाहेण समं अच्छए य परामणे निसनी ॥२४|| अह अम्हे संभंता तेसिं १ अ० हुड० । २ लाज आर्द्रतण्डुलः । Deeeeeeee Recnecemercene || ७७॥ Jain Education For Private & Personal Use Only C inelibrary.org
SR No.600009
Book TitleTarangvaikaha
Original Sutra AuthorPadliptsuri, Nemichandrasuri
Author
PublisherJivanbhai Chotabhai Zaveri
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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