SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 627
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एयाओ भावणाओ भाविता देवदुग्गई जति । तत्तोऽवि चुआ संताप (रि)ति भवसागरमणंतं ॥१६६१॥ एयाओ विसेसेणं परिहरई चरणविग्यभूआओ। एअनिरोहाओ चिअ सम्मं चरणंपि पावेइ ॥ १६६२॥ आह ण चरणविरुद्धा एआओ एत्थ चेव जंभणि जो संजओऽवि भइओ चरणविहीणोअइच्चाई॥१६६३॥ ववहारणया चरणं एआसुं जं असंकि लिट्ठोऽवि । कोई कंदप्पाई सेवइ ण उ णिच्छयणएणं ॥ १६६४ ॥ अखंडं गुणठाणं इ8 एअस्स णियमओ चेव । सइ उचियपवित्तीए सुत्तेवि जओ इमं भणियं ॥१६६५॥ जो जहवायं न कुणइ मिच्छट्टिी तओहु को अण्णो ?। वड्ढेइ अमिच्छत्तं परस्स संकं जणेमाणो॥१६६६॥ कंदप्पाईवाओ न चेह चरणम्मि सुबइ कहंचि (हिंवि)।ता एअसेवणंपि हु तवायविराहगं चेव ॥ १६६७॥ किंतु असंखिजाई संजमठाणाई जेण चरणेऽवि । भणियाई जाइभेया तेण न दोसो इहं कोइ ॥ १६६८॥ एआण विसेसेणं तच्चाओ तेण होइ कायचो । पुश्विं तु भाविआणवि पच्छायावाइजोएणं ॥ १६६९ ॥ कयमित्थ पसंगणं पगयं वोच्छामि सबनयसुद्धं । भत्तपरिणाए खलु विहाणसेसं समासेणं ॥ १६७०॥ वियडण अब्भुट्ठाणं उचिअं संलेहणं च काऊणं । पच्चक्खइ आहारं तिविहं च चउविहं वावि ॥ १६७१ ॥ उच्चत्तइ परिअत्तइ सयमण्णेणावि कारवइ किंचि । जत्थ समत्थो नवरं समाहिजणगं अपडिबद्धो ॥१६७२॥ मेत्तादी सत्ताइसु जिणिंदवयणेण तह य अचत्यं । भावेइ तिवभावो परमं संवेगमावण्णो ॥ १६७३ ॥ सुहझाणाओ धम्मो तं देहसमाहिसंभवं पायं । ता धम्मापीडाए देहसमाहिम्मि जइअचं ॥ १६७४॥ - SARLAA % Jain Education in For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy