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आहऽप्पवहणिमित्तं एसा कह जुज्जई जइजणस्स। समभाववित्तिणो तह समयत्थविरोहओ चेव ?॥१५८३॥
तिविहाऽतिवायकिरिआ अप्पपरोभयगया जओ भणिया।
बहुसो अणिट्ठफलया धीरोहिं अर्थतनाणीहि ॥ १५८४ ॥ भण्णइ सचं एअंण उ एसा अप्पवह णिमित्तंति । तल्लक्खणविरहाओ विहिआणुट्ठाणभावेण ॥ १५८५ ॥ जा खलु पमत्तजोगा णिमा रागाइदोससंसत्ता । आणाओ बहिभूआ सा होअइवायकिरिआ य ॥१५८६ ॥ जा पुण एअविउत्ता सुहभावविवडणा अनियमेणं । सा होइ सुद्धकिरिआ तल्लक्खणजोगओ चेव ॥१५८७॥
पडिवजह अ इमं जो पायं किअकिचिमो उ इह जम्मे ।
सुहमरणमित्तकिचो तस्सेसा जायइ जहुत्ता ॥ १५८ ॥ १५८८ ॥ मरणपडिआरभूआ एसा एवं च ण मरणनिमित्ता।जह गंडछेअकिरिआ णो आयविराहणारूवा ॥१५८९॥ अब्भत्था सुहजोगा असवत्ता पायसो जहासमयं । एसो इमस्स उचिओ अमरणधम्मेहिं निद्दिटो॥१५९०॥ ता आराहेमु इमं चरमं चरमगुणसाहगं सम्मं । सहभावविवड्डी खलु एवमिह पवत्तमाणस्स ॥ १५९१ ॥ उचिए काले एसा समयंमिवि वणिआ जिणिदेहिं । तम्हा तओ ण दुट्ठा विहिआणुट्ठाणओ चेव ॥१५९२॥ भावमवि संलिहेई जिणप्पणीएण झाणजोएणं । भूअत्थभावणाहिं परिवड्डा बोहिमूलाई ॥ १५९३ ॥ भावेद भाविअप्पा विसेसओ नवरि तम्मि कालम्मि । पयईए निग्गुणतं संसारमहासमुद्दस्स ॥ १५९४ ॥
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पशव.५१
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