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केई भांति एसो गुरुसंजमजोगओ पहाणोति । थेरविहाराओऽवि हु अच्चतं अप्पमायाओ ॥ १५५५ ॥ अण्णे परत्थविरहानेवं एसो अ इह पहाणोत्ति । एअस्सवि तदभावे पडिवत्तिणिसेहओ चैव ॥ १५५६ ।। अन्भुजयमेगयरं पडिवजिउकामों सोवि पवावे । गणिगुणसलद्विओ खलु एमेव अलद्वित्तोऽवि ॥ १५५७ ॥ एव पहाणी एसो एतेणेव आगमा सिद्धो । जुन्तीऽवि अ नेओ सपरुवगारो महं जम्हा ।। १५५८ ।। णय एतो उदगारी अण्णो णिवाणसाहणं परमं । जं चरणं साहिजड़ करसह सुहभावजोएण ॥ १५५९ ॥ अचंतिअसुहहेक एअं अण्णेसि णिअमओ चेव । परिणमइ अप्पणोऽवि हु कीरंतं हंदि एमेव ॥ १५६० ॥ गुरुसंजमजोगोऽवि हु विष्णेओ सपरसंजमो जत्थ । सम्मं पवहुमाणो थेरविहारे अ सो होइ ॥ १५६१ ॥ अच्चतम माओऽवि भावओ एस होइ णायचो । जं सुहभावेण सया सम्मं अण्णेसि तक्करणं ।। १५६२ ।। जइ एवं कीस मुणी थेरविहारं विहाय गीआदि । । पडिवजंति इमं नणु कालोचिअमणसणसमाणं ॥ १५६३ ॥ तक्काले उचिअस्सा आणा आराहणा पहाणेसा । इहरा उ आयहाणी निष्फलसत्तिक्खया णेआ ॥ १५६४ ॥ अassurभंगाओ एसो अहिगगुणसाहणसहस्स । हीणकरणेण आणा सत्तीऍ सयावि जइअवं ।। १५६५ ।। एतो अ इमं एवं जं दसपुवीण सुबई सुत्ते । एअस्स पडिस्सेहो तयण्णहा अहिंगगुणभावा ।। १५६६ ॥ एवं तत्तं न विसेसओ एव सत्तिरहिएहिं । सपरुवगारे जन्तो कायवो अप्पमतेहिं ॥ १५६७ ॥ सोयण थेरविहारं मोतुं अन्नत्थ होइ सुद्धो उ। एत्तो चिअ पडिसिद्धो अजायसम्मत्तकप्पो अ ।। १५६८ ।।
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