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________________ णचंतसंकिलिट्ठासु थेवकालं व हंदि इअरासु । चित्ता कम्माण गई तहावि विरिअं फलं देह ॥१५०४॥दारं॥ झाणंमिवि धम्मेणं पडिवजइ सो पवड्डमाणेणं । इअरेसुवि झाणेसुं पुखपवण्णो ण पडिसिद्धो ॥ १५०५॥ | एवं च कुसलजोगे उद्दामे तिबकम्मपरिणामा। रोद्दद्देसुवि भावे इमस्स पायं निरणुबंधो॥ १५०६ ॥ दारं ॥ गणणत्ति सयपुहुत्तं एएसि एगदेव उक्कोसा । होइ पडिबजमाणे पडुच्च इअरा उ एगाई ॥ १५०७॥ पुवपडिवनगाण उ एसा उक्कोसिआ उचिअखित्ते।होइ सहस्सपुहत्तं इअरा एवंविहा चेव ॥१५०८॥ दारंग। वाईआभिग्गह विचित्तरूवा ण होंति इत्तिरिआ। एअस्स आवकहिओ कप्पो चिअभिग्गहोजेण॥१५०९॥ एयम्मि गोअराई णिअया णिअमेण णिरववाया यातप्पालणं चिअ परं एअस्त विसुद्धिठाणं तु॥१५१०॥ दारं॥ पवावेइ ण एसो अण्णं कप्पट्टिओत्ति काऊणं । आणाउ तह पथट्टो चरमाणसणिव गिरविक्खो ॥ १५११ ॥ उवएसं पुण विअरइ धुवपवावं विआणि कंची। तंपि जहाऽऽसण्णेणं गुणओ ण दिसादविक्खाए ॥ १५१२ ।। दारं ॥ मुंडावणावि एवं विपणेआ एत्य चोअगो आह । पवजाणंतरमो णिमा एसत्ति कीस पुढो ? ॥ १५१३ ॥ ___ गुरुराहेहण णिअमो पबइअस्सवि इमीए पडिसेहो। ___ अजोग्गस्साइसई [ पलिभग्गादोवि ] होइ जओ अओ पुढो दारं ॥१५१४ ॥ आवण्णस्स मणेणावि अइआरं निअमओ अ सुहमपि । पच्छित्तं चउगुरुगा सबजहण्णं तुणेअचं ॥१५१५॥ For Private &Personal use Only A Jan Education Inter ww.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
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