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श्रीपञ्चव.
३ गणाणुण्णा
॥ २९६ ॥
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पढमदिवसम्म कम्मं तिण्णि अ दिवसाणि पूइअं होइ । पूईसु तिसुण कप्पड़ कप्पड़ तइए कए कप्पे ॥ १४६६ ॥ गाहिए अजं नवि आए कल्ल तस्स दाहामो । दोणि दिवसाणि कम्मं तइआई पूइअं होइ ॥ १४६७ ॥ तिहिं कप्पेहिं न कप्पड़ कप्पड़ तं छट्ठसत्तमदिणम्मि । अकरणदिअहो पढमो सेसा जं एक दोण्णि दिणा ॥ १४६८ ॥ अह सत्तमम्मि दिअहे पढमं वीहिं पुणोऽवि हिंडतं । दहूण साय सड्डी तं मुणिवसभं भणिजा हि ॥ १४६९ ।। किं णागयत्थ तइआ ? असइओ मे कओ तुह निमित्तं । इति पुट्ठो सो भयवं बिइआए से इमं भणइ ॥१४७० ॥ अणिआओ वसहीओ इचाइ जमेव वण्णिअं पुविं । आणाए कम्माई परिहरमाणो विशुद्धमणो ॥ ९४७१ ॥ चोएई पढमदिणे जइ कोइ करिज्ज तस्स कम्माई । तत्थ दिअं णाऊणं अजंपिडं चैव तत्थ कहं ॥। १४७२ ॥
अग एवं इहं जइ उ करिजाहि कोइ कम्माई । ण हि सो तं ण विआणइ सुआइसय जोगओ भयवं ॥। १४७३ ॥ एसो उण से कप्पो जं सत्तमगम्मि चेव दिवसम्मि । एत्थ अडइ एवं आरंभविवजगणिमित्तं ॥ १४७४ ॥ इअ अणियवित्तिं तं दहुं सद्भाणवी तदारंभे । अणिअयमो ण पवित्ती होइ तहा वारणाओ अ ॥। १४७५ ।। इअरेऽवाऽऽणा उच्चि गुरुमाइ निमित्तओ पइदिणंषि । दोसं अपिच्छमाणा अडंति मज्झत्थभावेण ॥। १४७६ ॥ एवं तु ते अहंता वसही एक्काए कइ वसिजाहि ! | वीहीए अ अडता एगाए कह अडिज्जाहि ॥ १४७७ ॥ erry aunty उक्कोसेणं वसंति सत्त जणा । अवरोप्परसं भासं वज्र्जिता कहवि जोएणं ॥। १४७८ ॥ वही एक्का एक्को चिअ पइदिणं अडइ एसो । अण्णे भगति भयणा सा य ण जुत्तिक्खमा णेआ ॥ १४७९ ॥
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जिनकल्पः
॥ २९६ ॥
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