________________
श्रीपञ्चव. २ प्रतिदिनक्रिया
॥२६॥
जिणदिवमेवमेअं निरभिस्संगं विवेगजुत्तस्स । भावप्पहाणमणहं जायइ केवल्लहेउत्ति ॥ ५३२॥
प्रत्याख्या
| नेवि आह जह जीवघाए पच्चक्खाए न कारए अन्नं । भंगभयाऽसणदाणे धुवकारवणत्ति नणु दोसो ॥५३३॥
वैयावृत्त्यं नो कयपच्चक्खाणो आयरियाईण दिज असणाई। ण य विरइपालणाओ वेआवचं पहाणयरं ॥५३४॥ नो तिविहंतिविहेणं पच्चक्खइ अण्णदाणकारवणं । सुद्धस्स तओ मुणिणो ण होइ तभंगहेउत्ति ॥५३५॥ सयमेवऽणुपालणि दाणुवएसा य नेह पडिसिद्धा। तो दिज उवइसिज्ज व जहासमाही अ अन्नसिं ॥५३६॥ कयपच्चक्खाणोऽविअ आयरिअगिलाणबालवुड्डाणं । दिजाऽसणाइ संते लाभे कयवीरिआयारो॥५३७॥ संविग्गअण्णसंभोइआण दंसिज सड्ढगकुलाणि । अतरंतो वा संभोइआण जह वा समाहीए॥५३८॥ भाविअजिणवयणाणं ममत्तरहिआण नत्थि उ विसेसो।अप्पाणमि परम्मि अतो वजे पीडमुभओवि॥५३९॥ पुरिसं तस्सुवयारं अवयारं चऽप्पणो अनाऊणं । कुजा वेआवडिअं आणं काउं निरासंसो॥५४॥ भरहेणवि पुत्वभवे वेआवचं कयं सुविहिआणं । सो तस्स फलविवागेण आसि भरहाहिवो राया ॥५४१॥ भुंजित्तु भरहवासं सामन्नमणुत्तरं अणुचरित्ता । अट्टविहकम्ममुक्को भरहनरिंदो गओ सिद्धिं ॥ ५४२ ॥
PIM२६॥ पासंगिअभोगेणं वेआवच्चमिअ मोक्खफलमेव । आणाआराहणओ अणुकंपादिव विसयंमि ॥ ५४३ ॥ सुहतरुछायाइजुओ अह मग्गो होइ कस्सइ पुरस्स । एक्को अपणो णेवं सिवपुरमग्गोऽवि इअणेओ॥५४४॥ 12 अणुकंपाविओं पढमो सुहपरगामीण सो जिणाईणं । तयजत्तगो उ इअरो सदेव सामण्णसाहूणं ॥५४५॥
( 6
For Private & Personal Use Only
Jan Education inte
w ww.jainelibrary.org