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सत्तहिअरओ अतहा आएओ अणुवत्तगो अगंभीरो । अविसाई परलोए उवसमलद्धीइ कलिओ अ॥१२॥ तह पवयणत्थवत्ता सगुरुअणुन्नायगुरुपओ चेव । एआरिसो गुरू खलु भणिओ रागाइरहिएहिं ॥१३॥ . एआरिसेण गुरुणा सम्मं परिसाइकजरहिएणं । पवजा दायवा तयणुग्गहनिजराहे ॥१४॥ भत्तिबहुमाणसद्धा थिरया चरणम्मि होइ सेहाणं । एआरिसम्मि निअमा गुरुम्मि गुणरयणजलहिम्मि॥१५॥ अणुवत्तगो अ एसो हवाइ दढं जाणई जओ सत्ते । चित्ते चित्तसहावे अणुवत्ते तह उवायं च ॥१६॥ अणुवत्तणाएँ सेहा पायं पावंति जोग्गयं परमं । रयणंपि गुणुकरिसं उवेइ सोहम्मणगुणेण ॥१७॥ एत्थ य पमायखलिया पुत्वन्भासेण कस्स व न हुंति ? । जो तेऽवणेइ सम्मं गुरुत्तणं तस्स सफलंति ॥१८॥ को णाम सारहीणं स होज जो भद्दवाइणो दमए ? । दुढेऽवि अ जो आसे मेइ तं आसियं विति ॥१९॥ जो आयरेण पढमं पवावेऊण नाणुपालेइ । सेहे सुत्तविहीए सो पवयणपचणीओत्ति ॥२०॥ अविकोविअपरमत्था विरुद्धमिह परभवे अ सेवंता । जं पावंति अणत्थं सो खलु तप्पच्चओ सबो ॥२१॥ जिणसासणस्सऽवण्णो मिअंकधवलस्स जो अ ते दहूं। पावं समायरंते जायइ तप्पञ्चओ सोऽवि ॥ २२॥ जो पुण अणुवत्तेई गाहइ निप्फायई अ विहिणा उ । सो ते अन्ने अप्पाणयं च पावेइ परमपयं ॥ २३ ॥ णाणाइलाभओ खलु दोसा हीयंति वडई चरणं । इअ अब्भासाइसया सीसाणं होइ परमपयं ॥ २४ ॥ एआरिसा इहं खलु अण्णसिं सासणम्मि अणुरायो । बीअं सवणपवित्ती संताणे तेसुऽवि जहुत्तं ॥ २५॥
- CAKACAMARCLUSARAM
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