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श्रीपञ्चव. उपस्थापनावस्तु ३
॥ १०२ ॥
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णाद्, अनिष्टफलमेतदिति गाथार्थः ॥ ३२ ॥ अतः परं वृद्ध सम्प्रदायः - 'अह दोऽवि पियापुत्तजुगलगाणि तो इमो विही - दो थेर खुड्ड थेरे खुड्डग वोचत्थ मग्गणा होइ । रन्नो अमञ्चमाई संजइमज्झे महादेवी ॥ ६३३ ॥ दो पुत्तपिआ पुत्ता एगस्स पुत्तो पत्त न उ थेरो । गाहिउ सयं व विअरइ रायणिओ होउ एसविआ ॥ ६३४ ॥
दो थेरा सत्ता समयं पचाविया, एवं 'दो थेर'त्ति दोsवि थेरा पत्ता ण ताव खुड्डगा, थेरा उवहावेयवा, 'खुड्डग'त्ति दो 'खुड्डा पत्ता ण थेरा, एत्थवि पण्णवणुवेहा तहेव, 'धेरे खुड्डग'त्ति दो थेरा खुड्डगो य एगो एत्थ उवट्ठावणा, अहवा दो खुड्डगा थेरो य एगो पत्तो, एगे थेरे अपावमाणम्मि एत्थ इमं गाहासुतं ॥ ३३ ॥
पुद्धं कण्ठ्यं, आयरिएण वसभेहिं वा पण्णवणं गाहिओ विअरइ सयं वा वियरइ ताहे खुड्डगो उवठ्ठाविज्जउ, अणिच्छे रायदिहंतपण्णवणा तहेव, इमो विसेसो-सो य अपत्तथेरो भण्णइ एस ते पुत्तो परममेधावी पुत्तो उवट्ठाविज्जइ, तुमं ण विसज्जेसि तो एए दोsवि पियापुत्ता राइणिया भविस्संति, तं एयं विसज्जेहि, एसवि ता होउ एएसिं रातिणिउत्ति, अओ परमणिच्छे तहेव विभासा, इयाणिं पच्छद्धं - 'रण्णो अमच्चाइ'त्ति राया अमच्चो य समगं पद्माविया, जहा पियापुत्ता तहा असेसं भाणियवं, आदिग्गहणेणं सिट्ठिसत्थवाहाणं रण्णा सह भाणिय, संजइमज्झेऽवि दोन्ह मायाधितीणं दोण्ह य मायाधितीजुवलयाणं महादेवीअमचीण य एवं चैव सर्व भाणियां ॥ ३४ ॥ राया रायाणो वा दोण्णिवि सम पत्त दोसु पासेसु । ईसरसिट्टिअमच्चे निअम घडा कुला दुवे खुड्डे ॥६३५॥
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समासम
प्राप्तोप
स्थापना
॥ १०२ ॥
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