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________________ आचार दिनकरः विभागः२ गणिपदप्रदान ॥११७॥ विधिः पर्ट समप्पेह । समप्पेमि । पट्ट आपे । शिष्य पट्ट हाथमा लइ नाणने तथा गुरुने त्रण प्रदक्षिणा दे । खमा इच्छ० भग० तुम्हे अम्ह नाम ठवणं करेह । गुरु:-कोटिगण नाम स्थापन करे । वासक्षेप । संघ वासक्षेप करे । सज्झाय करे। उपयोगनो काउ० । गुरुवन्दन । हितशिक्षा । नूतन उपाध्याय उपदेश आपे । संघ ४ नूतन उपाध्यायने वन्दन करे । नूतन उपाध्याय, खमा० इरियावही करो सचित्त अचिरज० काउ० संघ सहित-शूद्रोपद्रव नो काउ करे । अविधि आशा० मि० दु। उवज्झायपद मंत्रनी नवकारवाली १। चैत्ये देववन्दन ॥ उपाध्याय पद योग्य गुण ज्ञापिका गाथासम्मत्त नाण संजमजुत्तो,सूत्तत्थ तदुभय विहिन्नु । आयरिय ठाण जुग्गो, सूत्तं वाएइ उवज्झाओ ॥ सर्व मंगल-(१) काळग्रहण लेवानी जरुर नहि (२) लोच कराववो (३) नंदिसूत्र मध्यम सामाचारीमा छे ते संभळावq. (४) क्रिया पछी पट्ट सन्मुख मंत्रनी नवकारवाळी गणवी. आचार्य पद योग्यलक्षणं यथा-पत्रिंशदगुणसंयुक्तः सुरूपोऽखण्डितेन्द्रियः। अखण्डिताङ्गोपाङ्गश्च सर्व विद्या विशारदः॥१॥ कृतयोगो द्वादशाङ्गीपरिज्ञानसचेतनः । शूरो दयालु/रश्च गम्भीरो मधुरस्वरः ॥२॥ For Private & Personal Use Only ॥११७॥ Jan Education a l jainelibrary.org
SR No.600003
Book TitleAchar Dinkar
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherJaswantlal Girdharlal & Shah Shantilal Tribhovandas Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages566
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
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