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________________ -OCT-NCREMROSAROGRAM. ५० च्यवनजन्मतपोद्वयं अनागाढं एकैवाकृतिः |तितीर्थंकरानुद्दिश्य तदिनानिउ १ क पा | उ अ | पा | उ । सं। पाउ विनापि यथाशक्ति एकान्तरा १ अ | पा | उ १ सु पा | उ १ प पा उसु पाउ | पा | उसु पा उशी पा | उश्र पा |उवा पा | श्चतुर्विशत्युपवासा विधीयन्ते। उवि पा | उ अ | पा | उ १ध पा | उशा पा | उ १ क पा | उ अ पा | उद्यापन वृहत्लानविधिपूर्वका | उ १ म पाउ १ मु पाउन पाउन पाउ १ पा पा | उ १ व पा | जिनाग्रे चतुर्विशतिसंख्यया पकानफलजातिढौकनं संघवात्सल्यं संघपूजा च । एतत्फलं सद्गतिः। जन्मतपोप्येवमेव । यन्त्रकन्यासः । इति यतिश्राद्धकरणीयमनागाढं च्यवनजन्मतपोद्वयं ॥५०॥ ॥ अथ सूरायणतपः। सूरवदयनं हानिवृद्ध्या यस्य COMRANCC ५१ यवमध्ये सूरायणतपः कृष्णपक्षे हानिः२ यधमध्ये सूरायणतपः शुक्लपक्षे वृद्धिः कृष्ण १५१४१३१२१११० ९८७६ ५४३२|| शुक्ल || २३/४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ तिथि या ग्रा ग्राग्रा ग्राग्रा ग्राग्रा ग्रा'ग्रा ग्राग्रा ग्रा ग्राग्रा तिर्थ या ग्रा ग्राना ग्रा ग्राग्रा ग्रा ग्राग्रा प्राग्रा ग्राग्राम ५१ वज्रमध्ये सूरायणतपः कृष्णपक्षे हानिः वज्रमध्ये सूरायणतपः शुक्लपक्षे वृद्धिः२ कृष्ण १५/१४/१३/१२१११०९८७६/५/४३२१ शुक्ल १२३४५६७८९ १० ११ १२ १३ १४ १५ तिथि ग्रा ग्रा या ग्रा ग्रा ग्रा या ग्रा प्रा डा या ग्राग्रा या या तिथि प्रा ग्रा प्रा या या या या या या या प्रा डा ग्रा या ग्रा। तत्सूरायनं । तत्र सूरायणतपो वज्रमध्ययवमध्यचांद्रायणवत्। नवरं कृष्णप्रतिपदि प्रारम्भः । यत्रकन्यासः । आ.दि.६२ Jan Education Internet For Private & Personal Use Only WOMww.jainelibrary.org
SR No.600002
Book TitleAchar Dinkar Part-2
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherKesrisingh Oswal Khamgamwala Mumbai
Publication Year1923
Total Pages534
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
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