SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्यष्टषष्टिः । यन्त्रकन्यासः । उद्यापने रूप्यमयपट्टिकायां सुवर्णलेखिन्या पञ्चपरमेष्ठिमन्त्रं लिखित्वा ज्ञानपूजा विदध्यात् । अष्टषष्टिसंख्यया फलपुष्पमुद्रापक्कान्नढौकनं संघवात्सल्यं संघपूजा च । एतत्फलं सर्वसुखहै प्राप्तिः । इति यतिश्राद्धकरणीयमागाढं नमस्कारतपः ॥ ३५॥ ॥ अथ चतुर्दशपूर्वतपः। शुक्लपक्षे तपः कार्य ---MECC00- *** KIRISHISHIGURAS k ३५ नमस्कारतपः आगाढं तपोदिन ६८ पदेऽक्ष ७/७ न मो | अ | रि | हं | ता गं ए -७ २ पदेऽक्षर | ५ | न मो सि | द्धा गं ए ५ = ३ पदेऽक्षर नमो | आ| यरिया ण ए७ ४ पदेऽक्षर न मोउ व ज्झा या णं । ए७ ५पदेऽक्षर ९न मो लो ए| स ब्व सा हूणं ए९ ६ पदेऽक्षर ८ ए सो पं च | न मु का रो ए८ ७ पदेऽक्षर ८ स व्व पा | व |प्प णा सणो | ए८ ८ पदेऽक्षर | मंगला च स ब्व सिं एक | ९ पदेऽक्षर ९८ प ट | मं ह व इ म | ग लए ९ ३६ चतुर्दशपूर्वतप आगाढं । | शुक्ल चतुर्दशी | १४ | २ अमायणीय | १४ ए उत्पादपू. १४ अस्तिप्रवाद | ए वीर्यप्रवाद ३४ | सत्यप्रवाद ६ ए ए ज्ञानप्रवाद ५१४ | कर्मप्रवाद ८ आत्मप्रवाद १४ विद्याप्रवाद १० ए | ए प्रत्याख्यान ९ | १४ प्राणावाय १२ ए | ए कल्याणनाम ११/१४ | लोकबिंदुसार | ए | ए क्रियाविशा १३ १४ ए ए | i -4654 Jain Education Internat For Private & Personal Use Only Diwww.jainelibrary.org
SR No.600002
Book TitleAchar Dinkar Part-2
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherKesrisingh Oswal Khamgamwala Mumbai
Publication Year1923
Total Pages534
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy