SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय भारत में बौद्धधर्म का नव-जागरण बौद्ध धर्म विश्वका अनुपम धर्म है। इससे संसारके ध्यान बौद्ध धर्म की ओर अधिक आकर्षित हो रहा है और बहुसंख्यक प्राणियोंका कल्याण हुआ एवं होता आ रहा यह भी सत्य है कि उन्हें बौद्ध धर्म के अतिरिक्त अन्यत्र है। यद्यपि इसकी जन्मभूमि भारत महादेश है, यह कहीं भी शान्ति न प्राप्त होगी। बौद्ध धर्म का सार्वभौम भारतका गौरव है. इससे ही विश्व में भारत देशकी कीर्ति सिद्धान्त न केवल उनके लिए ही. प्रत्युत मानवमात्र के बढ़ी है, सांस्कृतिक अभ्युस्थान एवं प्रसारमें जिस चम- लिए शान्तिदायक और कल्याणकर है। स्कारिक एवं अहिंसक रूप से इसने अग्र स्थान ग्रहण किया। इधर भारत के विधि मन्त्री डा. अम्बेदकर के बौद्ध है, यह इतिहासकी एक स्वर्ण-शृङ्खला है, भारतका स्वर्ण. धर्म में दीक्षित हो जाने एवं श्री पी. एन. राजभोज के युग बौद्ध-युग है, जबतक भारतमें यह व्याप्त रहा तबतक भाषणों तथा अखिल भारतीय परिगणित जातिसंघ द्वारा हमारा देश धन धान्यसे सम्पन्न एवं सुखी रहा, वाह्य बौद्ध धर्म को ग्रहण करने की घोषणा से भारत के बहुत देशोंका गुरु बना रहा, विदेशी लोग इसके सार्वभौमिक , से कट्टरपंथी थर्रा गये हैं एवं बुरा-भला कहने लगे हैं, किन्तु सिद्धान्तसे सदा प्रभावित रहे, किन्तु हमारे देशकेही वर्ग उन्हें जरा हृदय पर हाथ रखकर शान्त मन से विचार विशेष की जलन एवं विदेशी आक्रमणोंसे-जो वस्तुतः करना चाहिए कि बौद्ध धर्म-जो अपनी विशेषताओं के ही उस जलनकाही फल था-इसके अनुयायियों (बौद्धों) की कारण विश्व व्याप्त है-भारत का ही अपना धर्म है, जिसे शक्ति क्षीण हो गई। उसके बाद भारतमें एक ऐसा भी वे 'अपना' कहते भी हैं, अन्य विदेशी धर्मों की अपेक्षा समय देखनेको मिला जबकि भगवान् बुद्ध एवं बौद्धधर्मके इसके प्रसार से उन्हें क्षोभ क्यों हो रहा है? क्या वे इस जाननेवालोंका एकदम अभाव हो गया। कुछ दिन पूर्वतक देश में भारतीय संस्कृति की अपेक्षा वाह्य देशीय संस्कृति लोग बुद्ध-मन्दिरों में जाकर पूछा करते थे-"क्या यह का प्रसार ही चाहते हैं ? बौद्ध धर्म ने दर्शन, इतिहास, बर्माके भगवान् हैं ?" संकृति एवं नैतिक क्षेत्र में भारत की जो सेवा की है. वह हमारे देशके पण्डित नामधारियोंने अपनी अज्ञानता- किसी धर्म या सम्प्रदाय से नहीं हो पायी है। यह बिल्कुल का परिचय देने में भी उठा न रखा। ऐतिहासिक बुद्ध' सत्य है कि यदि बौद्ध धर्म न होता तो भारतीय संस्कृति एवं 'पौराणिक बुद्ध' बनाना स्वार्थ-लोलुप वर्ग-विशेषका विश्वकी अन्य संस्कृतियों के समक्ष नगण्य समझी जाती म था, किन्तु अब वह समय बीत गया। इस समय और भारतीय जीवन की मिट्टी पलीद हो गई होती। प्राच्य जबकि हमारा महादेश साम्प्रदायिक अग्निमें जल रहा है, धर्मों में यही एक ऐसा धर्म है जो सभी सम्प्रदाय, वर्ग, जाति-भेद, छूआछूत, नीच-ऊँच, स्वेच्छाचारिता, अन्याय, जाति, वंश एवं कुल की मर्यादा को छिन्नभिन्न कर समता धार्मिक-पाखण्ड, स्वछन्दता एवं ऊच्छ खलतासे लोग ऊब की श्रृंखला में बाँधने में समर्थ है। जिस प्रकार समुद्र से गये हैं, तब ऐसे समयमें अब इन सब बातोंसे रहित मिलते ही सभी सरिताओं का नाम लुप्त हो जाता है एवं प्रजातन्त्रके सिद्धान्तके अनुकूल, समता एवं मैत्रीके अद्वितीय सभी के जल का स्वाद भी समान हो जाता है. उसी प्रकार परिपोषक बौद्धधर्मकी ओरही सबकी दृष्टि जा रही है। सभी लोग इसे अपनाकर समान हो जाते हैं. उनमें किसी रंगून में भारत के प्रधान मन्त्री नेहरू जी ने भारत प्रकार का भी भेद नहीं रह जाता। भारत का नैतिक में बौद्ध धर्म के सम्बन्ध में जो यह कहा था कि 'भारत उत्थान यदि हो सकता है तो केवल बौद्ध धर्म के ही भव. भगवान् बुद्ध के उपदेशों से अत्यन्त प्रभावित है। भारत लम्बन से। बापू ने भी इसीलिए इसे अपना आदर्श माना बौद्ध धर्म के निकटतम सम्बन्ध में आता जा रहा है।' वह एवं इसके अहिंसा मादि सिद्धान्तों का प्रचार तथा पालन अक्षरश: सत्य है। इस समय पीड़ित एवं शोषित वर्गों का किया।
SR No.545672
Book TitleDharmdoot 1950 Varsh 15 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmrakshit Bhikshu Tripitakacharya
PublisherDharmalok Mahabodhi Sabha
Publication Year1950
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Dharmdoot, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy