________________
* गेटे की कृतियों में अहिंसा, सत्य और स्वाधीनता
की है जो समाजों को सशक्त कर सकते हैं । यह, सामाजिक शक्ति द्वारा - पशु-हन-बल द्वारा नहीं, वरन् पौदों की हिंसा द्वारा ही हो सकता है। गेटे की हिंसा को समने के लिए 'वनस्पति रूप विज्ञान' को पढ़ना चाहिए। गेटे ने अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने के लिए अहिंसा मार्ग को ही अपनाया है । घृणा और हिंसा के मार्ग को नहीं : "राष्ट्रीय घृणा सर्वथा ही" - एक बार गेटे ने लिखा- " कोई विचित्र वस्तु है । आप इसे वहाँ सदैव सबल एवं अतिप्रबल (या भयानक) पाएँगे जहाँ संस्कृति का अभाव-सा है (या वह कम अंशों में है ) किन्तु जहाँ (संस्कृति) है वहाँ से यह (घृणा) नितान्त विला जाती है । और वहाँ मनुष्य राष्ट्रीयता से कुछ ऊँचा उठकर खड़ा होता है तथा अपने पड़ोसी राष्ट्रों के हिताहित को इस प्रकार अनुभव करता है जैसे अपने ऊपर ही बीती हो । संस्कृति का यह स्तर मेरी (गेटे की) प्रकृत्यानुकूल था और मैं 'बहुत पहले जब ६० साल का हुआ, बलवान हो गया था..."
हिंसा की बहिन सत्य है और सत्य स्वाधीनता का दूसरा पहलू है । परन्तु टे का सत्य पथ इस प्रकार के विश्वास करने का विचार नहीं है कि 'मैं आन्तरिक जगत में सत्य रखता हूँ — जो कि पर्याप्त है।' पर, वह है सक्रिय होने का जिससे कि
१३
सत्य प्राप्त किया जा सके । तुच्छ लोग कितनी अतिशयोक्ति करते हैं तथा कहते हैं कि उनकी कृतियाँ, उनकी रचनाएँ केवल उनके ही प्रातिभ-ज्ञान (Intuition) में पाईं जाती हैं। गेटे का रुख सत्य से शासित है। अतएव वह बहुत ही स्वाभाविक ढंग से कहता है कि बड़ेबड़े आदमियों को भी दूसरों की बुद्धि से कुछ उधार लेना पड़ता है :
66.
'असाधारण धीमान भी बहुत दूर तक नहीं गए, उन्होंने अपनी अन्तरात्मा के लिए प्रत्येक वस्तु उधार लेने की कोशिश की। किन्तु बहुतेरे अच्छे व्यक्तियों ने इस पर विचार नहीं किया और उन्होंने मौलिकता के स्वप्न को लेकर आधे जीवन तक अन्धकार में टटोला। मैं, किसी भी तरह, अपने काम को अपनी ही बुद्धिमत्ता का श्रेय नहीं देता हूँ, प्रत्युत अपने निकट की बहुत सी वस्तुओं तथा व्यक्तिओं को (श्रेयदेता हूँ) जिन्होंने कि हमें कुछ मशाला दिया है । मूर्ख और महात्मा, विशाल मस्तिष्क वाले और संकुचित, शैशव, जवानी और बुढ़ापा - सब ने मुझे बताया कि उन्होंने क्या अनुभूति की, उन्होंने क्या सोचा, उन्होंने कैसे जीवन यापन किया, क्या काम किया, उन्होंने क्या अनुभव प्राप्त किए ? मेरे पास आगे कुछ भी नहीं है सिवाय इसके कि मैं अपना हाथ उस पर रखें और उसे लुन (या काहूँ) जिसे
ू