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॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥
दिगंबर जैन, THE DIGAMBAR JAIN.
नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः ।
संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्त्तताम्, दैगम्बर जैन समाज-मात्रम् ॥ ___ वर्ष १६ वाँ.|| वीर संवत् २४४९. भाद्रपद वि० सं० १९७९.
| अंक ११ वाँ.
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हो, मंदिरमें नहीं वर्तनी चाहिये । अर्थात् विलायती व मीलके बने कपड़े, जिसके तैयार कर. नेमें हजारों मन चर्बी वापरी जाती है ऐसे
कपड़े न वर्तकर हाथके सुतकी व हाथकी बुनी हमाग वार्षिक पुण्य पर्वाधिराज श्रीदशलाक्ष.
विशुद्ध खद्दरका ही उपयोग करना चाहिये तथा णी पर्व व्यतीत होरहा है
कीडोंको उबाल कर तैयार होनेवाले रेशमके दशलाक्षणी व शीघ्र ही चतुर्दशी अशुद्ध कपड़ेको तो मंदिर में अब स्थान न देना पर्व। आते ही दशलाक्षणी पर्व चाहिये । शास्त्रोंके बंधन, चंदोवा, तोरण आ
दिमें मखमल व रेशमी वस्त्रोंका उपयोग बहुत दश दिनों में अनंत चतुर्दशीका माहात्म्य विशेष है और इसीलिये सभी भाई बहिनें चतुर्दशीके पष्टन उपक
वेष्टन उपकरणादि बदल देने चाहिये । दिन विशेष धर्मध्यान करते हैं। सब दिनके ।
- अब इस चतुर्दशीको कई स्थानों पर कलह नहीं तो चतुर्दशीका अपवास तो बहुतसे भाई चतु
चतुर्दशी बना देते हैं अर्थात् इसदिन न्याति व बहिनें अवश्य करते ही हैं । और इस दिन .
___ मंदिर संबंधी अनेक झघड़े उपस्थित होकर बहुत सब भाई अपना२ व्यवहार बंद ही रखते हैं।
टंटा फिसाद होता है यह ठीक नहीं है । तथा कई स्थानों पर हमारे इस पर्वके कारण मदिरके हिसाब आदि पर्वके पहिले ही समन । व्यापार बन्द रहता है । अब इस चतर्दशीके लेने चाहिये जिससे पर्वमें झघडा होने का मौका
ही न आवे । दिन हमें अनेक प्रकारकेव्रत नियम लेने चाहिये, सुबहसे रात्रि तक सामायिक, प्रतिक्रमण, स्वा
___ हम गतांकमें लिख चुके हैं तो भी फिर ध्याय, पूजन, उपदेश आदिमें ही समय विताना
लिखते हैं कि हमें इसी चाहिये । हम 'अहिंसा परमो धर्मः'के माननेवाले तीर्थरक्षा फंड । पर्वमें तीर्थरक्षा फंडको हैं इसलिये हमारा प्रथम कर्तव्य है कि हमें एक
नहीं भूलना चाहिये । सी वस्तु कि जिसके बनने में हिंसा होती हमारे तीर्थोकी रक्षा ही हमारे धर्म यातनोंकी
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