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________________ (३) दिगंबर जैन । रोजी योग्य रीतिसे समय निकालकर मन, Sark**** dealerkoke s वंधन, कायसे जैन मित्रके संपादन कार्यको उत्तम . रीतिसे चला रहे हैं ऐसी दशामें ब्रह्मचारी भीको जन समाचारापाला । कार्यसे हटाकर अन्यको देना अदुरदर्शिता प्रगट ** * * ** ** करता है । जहांतक ज्ञात हुआ है उससे यही सूरतमें लग्न समारंभ, जल्ला व प्रतीत होता है कि ब्रह्मचारीजीको प्रथक् कर बृहत् दान । मेका कारण मतभेद है और मतभेदसे ही फूट सुरतमें सेठ किसनदास पूनमचन्द कापड़ियाके उत्पन्न होती है सो फूट तो सब समय पर पुत्र मूलचंदजीका लग्न समारम्म ज्येष्ठ वदी देशों में अत्याधिक परिमाणमें होती ही है। ४ को धार्मिक व सामाजिक उत्सव तथा विद्या आतामसे लगाकर कुस्तुन्तुनियां तक इस समय दान पूर्वक सानंद समाप्तहो गया। -फूटका साम्राज्य है । जित राष्ट्रीय महासमामें प्रथम ज्येष्ठ वदी १ को सुबह एक जरता कुछ समय पूर्व सर्वत्र ऐक्यता विराजमान थी भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीर्तिजीकी अध्यक्षता में हुमा उसमें तथा तरकारके परम सहायक सहयोगियों था जिसमें यहांको दि जैन पाठशालाके विद्यार्थी और सरकारमें भी फूट फैल चली है। नो हिंदु व फुलकोर कन्याशाला, श्राविकाशाला व कस्तूमुसलमान कुछ समय पूर्व कंधेसे कंधा लगाकर रवा राष्ट्रीय कन्याशालाकी बालिकाएं भामसरकारसे लोहा ले रहे थे उनमें भी आन मयं- त्रित की गई थीं जिन्होंने गायन, गरबा, संवाद कर फर फैल गई है । और तो जाने दीजिये आदि करके समाके मन रंजन किये थे । पाठअपने घरमें ही ( दिगम्बर श्वेताम्बरों में ) फूट शालाके छात्रों का पैसा, फेशन व खादीपर संवाद महारानीका साम्राज्य है ऐसी परिस्थिति में मत आकर्षक हुआ था। इस जल्से में पूज्य ब्र० भेद होनेसे ही एक योग्य संपादकको हटाकर शीतलप्रसादनी, व्र. दिग्विजयसिंहजी, पं. दुसरे संपादकको नियुक्त करना उचित नहीं दीपचंदजी वर्णी, ब्र. महावीरप्रसादजी, ब्र० कहा जा सका । इसलिये मेरा बंबई प्रांतिक हेमसागरजी आदि त्यागीगण तथा सुरतके समासे सनम्र निवेदन है कि वह उस प्रस्ताव पर असहकारी नेता जैसे कि डा. दीक्षित, मोतीपुनः विचार करें । मेरे इस लेखसे कोई माई लाक छोटालाल व्यास, मालतीनहिन आदि उप. यह न समझले कि पं० बंशीधरनी इस कार्यके स्थित थे व ब्र० शीतलप्रसादजी, पं. दीपचंदनी अयोग्य ही हैं परन्तु लिखनेका मुख्प तात्पर्य : दीक्षित, मोतीलाल नास, श्री. मगन. यही है किविना कोई विशेष कारण हुये ब्रह्मवा- बहिन, सरैमाजी आदिके व्याख्यान हुए थे जिसमें रोनीको नमित्रके संपादन कार्यसे हटाना समा. उन्होंने विवाह प्रसंगपर ऐसे ही जलसे होने की मका अहित करना है। आवश्यकता बताई थी। फिर सभी करीब देवेंद्रकुमार गोधा विशारद इन्दौर। २०० बालक व बालिकाओं को खादीके रुपाल,
SR No.543185
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
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