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दिगंबर जैन।
REARRIERREEEEERAJaaaaaaaaa* ॐ भारतीय दर्शनोंमें जैन दर्शनका स्थान।
इसी ( अंग्रेजी जैनगजटके मई २१के अंकमें प्रकाशित एक अजैन भट्टाचार्य महोदयके लेख का अनुवाद ।)
भूतकालके अंधकार में पड़ी हुई अपरिमित कारण कि यदि तर्कवाद मानुषिक स्वभावका रस्नराशिको प्रकाश में लानेके लिए अपने भरसक एक मुख्य चिन्ह है तो यह मानना भी कोई प्रयत्नों द्वारा पुगतत्वखोजी बहुतसी ऐसी व्या. अपयुक्त नहीं है कि किपी न किसी प्रकारका ख्यायों वा सामाजिक घटनाओं की तिथि-ईसाके न्याय और सिद्धान्तका प्रचार एक समाजमें पूर्व अथवा पश्चात-अङ्कित करने जैसे असाध्य तदेव प्रवलित रहता है। उस समय भी जा रोगमें व्यस्त हो जाते हैं । दृष्टान्त रूप विद्वान कि समाज थोथे क्रियाकाण्डके मध्य उतरा रही लोगोंने वेदवर्णित क्रियायोंके सम्बन्धमें न्याया- हो । अवश्य ही क्रियाकाण्ड स्वयं अपने निर्मास्वेषण करनेकी प्रथम क्रियाका समय निश्चित गमें सामाजिक बाल्यकालके पशु सदृश क्रिया परकरनेके लिए आपसमें विवाद किया । कितने कने के न्यायवादका कुसंस्कृतरूप है। तर्कवादका तो उन वेदमंत्रोंको जिनमें न्यायकी गम्यता पाई माव और स्थापित नैतिक नियमोंसे ऊ जा. जाती है क्रियाकाण्डके मंत्रोंके साथ साथ उनकी नेकी आकाक्षा, एवं उच्चसे उच्च उद्देश्योंका सैद्धांतिक परिभाषा करते हुए उन्हें पश्चात का विचार समानकी प्रत्येक दशामें विद्यमान है, नवीन संस्करण स्थापित किया है, मानो सिद्धा. चाहे उसका प्रत्यक्ष में वक्ता न पाया नाय । न्तका जन्म एक मुख्य निश्चित दिवप ही हुभा इस प्रकार सिद्धन ( Philosophy ) का हो। समानरीत्या जैनधर्म और बौद्धधर्मकी जन्म-प्तमय निश्च । करना कठिन HS7 है। प्राचीनताके संबन्ध में भी एक सगरम और अपश्य ही विविध दर्शनों की उपयुक्त रन उनके उद्विग्न विवाद विद्वानोंके मध्य चालु रहा। नापधारी संस्थापकों के बहु। पहिले विद्यमान किसीके मतानुसार जैनधर्म बौद्धधर्ममें से विकि- रही होगी । यह भ्रम है जैसे यह एन । सित हुआ और बौद्धधर्म मूल जड़ है । और कि बौद्ध और जैन धर्म बुद्ध और वद्धपान अन्योंने यह माना कि बौद्धधर्मसे पूर्व जैन धर्म. (महावीर) से प्रारंभ हुए। नहीं ! इन दोनों विद्यमान रहा था । चाहे जितनी ही विभिन्न ना धोके मुख्य एवं आवक तत्व इन दोनों इन विवादके यथार्थ भाव में हो, हम यह कहने का महात्माओंके पहिले से ही संचित हो रहे थे। साहस करते हैं कि इन विवादोंको अंशांशमें यह उन महात्माओं का ही शुभ कार्य था कि केवल मूल्यहीन ही नहीं यद्यपि मनोरंजक माना वे इन तत्वों का व्याख्यान करें-जातके समक्ष उन मासक्ता बल्कि एक देशके सैद्धान्तिक विकाशके तत्वोंकी यथार्थ एवं विशालताका प्रमाण प्रकट नियमके मिथ्या श्रमपर जारको चढ़ाए गए हैं। करें और सर्वपरे उन तत्वों का सर्वसाधारणमें