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________________ अंक १] लोढ़ामल:- ओहो ! आइये सेठ साहब ! आज आपने दासके घर पर कैसे तकलीफ़ की ? दिगंबर जैन पाठक ! अभी तक आप लोढ़ामलसे अपरिचित हैं और यह सोचते होंगे कि यह लोढ़ाम कौन है | यह एक कन्याविक्रयके दलाल है । यह इसी में खाते कमाते हैं । एक बड़े चालबाज, धूर्त और मतलबी यार हैं । आप यहां ऐसा कहेंगे कि बिरादरीवाले इनको ऐसा करनेसे दंड क्यों नहीं देते ? सो इसकी वजह यह है कि जो बिरादरीके मुखिया पंच हैं, उनकी गांडेंगुलामी किया करते हैं और इसी लिये कोई भी इनके विरुद्ध होता नहीं । कहा भी है कि " खुशामदसे देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं । यह, ܕܕ सब 1 1 किसन चंद : - " आपकी कृपा से कुशल मंगल है | मैं आपको एक तकलीफ दैने आया हूं और वह यह है कि आप जानते ही हैं कि चन्द्रकला अब विवाहने ★ योग्य हो गई है । सो मुझे उसका दिन रात फिकर लगा रहता है । आप जानते ही हैं कि जबसे चन्द्रकलाकी मा मरी है तबसे क्या दशा हो गई है । सो अब मुझे उसके वास्ते किसी लड़केकी तलाशी है ।" लोढ़ामल:- "अच्छा, आप यह बता - ये कि आप लड़का कैसा चाहते हैं । " किसनचंद :- "उम्रकी तो कोई परवा नहीं, पर धनवान होना चाहिए ताकि वह कुछ दे सके !" लोढ़ामल :- "अच्छा, आप यह बतलाइये कि आप कितना रुपया चाहते हैं और उसमेंसे मुझे कितना देवेंगे ?” किसनचंद :- "अगर ज्यादा नहीं तो चार, पांच हज़ार तो ज़रुर ही दे सके और उसमेंसे - सौ पचास आपको भी भेट किये जावेंगे । 99 लोढ़ा मल:- “सेठ साहब ! सौ पचास, तो बहुत कम है । खैर आप ज्यादा नहीं आप मुझे दोसौ रुपये ही दे दैना | देखिये, मैं आपका काम भी कितना करूंगा ।" इन दोनों में यह बात हो ही रही थी कि बाहरसे आवाज़ आई - "लोढ़ामलजी हैं क्या ?" लोढ़ामल :- " अरे भाई कौन है ?" आवाज़:- "अजी मैं हूं सेठ रतनचंद - जीका आदमी । " लोदामल :- " कहो क्या काम है ?" आदमी:- " आपको सेठ साहबने याद किया है ।" लोदामल :- "अच्छा, सेठ साहबसे मेरा जुहार कहना और कहना कि आते हैं ।" ऐसा सुनकर आदमी तो अपने घर गया । इधर किसनचंद भी विदा हुए । अब लोढ़ामल सोचने लगा । आज क्या बात है जो सेठजीने मुझे बुलाया है ! #
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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