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________________ > सचित्र खास अंक. ६९ [वर्ष ८ (४७) श्री शान्तिनाथ दि. जैन वि- गया था, उसके अन्त समयका यह ग्रुप द्यालय-ज्ञालरापाटन शहरः--श्री शान्ति- फोटो है । यज्ञोपवित धारण करनेवालोंको नाथजीका बहुत प्राचीन और दर्शनीय सप्तव्यसनत्याग और अष्टमूलगुणमन्दिरमें इस विद्यालयकी स्थापना दो वर्ष धारणादि व्रतनियमादि दिलाये गये थे हुए हुई है। दो वर्ष पहले श्रीमन् त्यागी और पंडित विष्णुदत्तशर्मा (अध्यापक जैन-१ ऐलक पन्नालालजीका चतुर्मास और केशलोच- पाठशाला) ने बड़े उत्साहके साथ जैनमहोत्सव हुआथा तबही इस विद्यालयके पद्धति अनुसार इस संस्कारको करानेके लिये ३००००) रु.का चन्दा हुआथा जिससे । सनी लिये ग्रहस्थाचार्यका पद धारण किया था और इस संस्कारकी आवश्यकता तथा कार्य सुभीतासे चलता है। अंदाजन् १११, इसके लाभ और आगेको इसकी सारसंभाविद्यार्थी अध्ययन करते हैं । प्रबंध बहुत 31 ल रखनेके नियमादि विषय पर एक सारअच्छा है। विद्यालयकमीटिके सभापति गर्भित मनोहर व्याख्यान दिया था और मुनीम साहब लुणकरणजी सेठ विनोदीराम परम हर्षका विषय है कि इसी संस्कारके बालचन्दजी साहबके हैं। मंत्री श्री.मदन हर्षमें जैन पाठशालाके विद्यार्थीयोंने अपने मोहनजी और उपमंत्री बाबू सुन्दरलालजी उस धनको जो उनको पारितोषिकमें दिया बैनाड़ा है जो विद्यालयका सब कार्य अच्छी जाना निश्चित हुआ था अमरोहाकी सर्व तरहसे चलाते हैं। मैनेजर सेठ लालचंदजी जैन बिरादरीमें तथा भादों शु. १५ की और खजाञ्ची सेठ हमीरमलजी हैं । विद्या जलधाराके वार्षिकोत्सव पर आए हुए ओंको धार्मिक नाटकभी सिखाये जाते हैं, जो कुछ उत्सवके समय कराया जाता, बाहरके २५०से अधिक स्त्री पुरुषों और है । इस विद्यालयके तालुक १ पुस्तकालय बालकोंमें हर व्यक्तिको चार चार लड्डु बांट देनेमें लगाकर सफल किया था । और १ औषधालयभी है और १ बोर्डिंगभी खुलनेवाला है। (४९) दि. जैन महोत्सव, मुलतान:- । गत् आसोज वदी २ को मुलतानमें दिगंबर (४८) यज्ञोपवितसंस्कार-अमरोहा:गत भादों शुक्ल १०को श्री जैनमन्दिर जैन महोत्सव बड़े आनन्दसे समाप्त हुआ (अमरोहा, मुरादाबाद)में नौमीके उपवासा- था जिसमें रथमें श्रीजी बिराजमान करके दिव्रतपूर्वक बड़े उत्सवके साथ जैनपद्धत्ति बड़े जलूसके साथ भजन और व्याख्यान अनुसार आठ वर्षसे बारह वर्ष तककी वयके बड़ी धूमधामसे हुआ था । यह चित्र भी छह विद्यार्थीओंका और इससे अधिक उसी समय सभामें लिया गया था । इस वयके १६ अन्य विद्यार्थीओं तथा विवाहित जलसा आगेके वर्षसे अति शोभनांक पुरुषोंका यज्ञोपवित (जनेऊ)संस्कार कराया हुआ था।
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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