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________________ > सचित्र खास अंक. Ek [ वर्ष ८ गल्लेका व्यापार होता है और अन्य ग्रा- धारणका और मुख्यतया उर्दू पबलिकका मोंमें आपकी ३०-३५ दुकाने हैं। प्रेस और जितना उपकार किया है वह किसीसे जीनींग फेक्टरी कई हैं और ब्यावरमें एक छिपा नहीं है। अमरोहामें आप ११ एडवर्ड मील है उसमें आधा हिस्सा आ- वर्षसे सर्कारी नौकरीपर हैं तभीसे सभाके शास्त्र पका है। ब्यावरकी जैन पाठशालाको नित्यप्रति वांचते हैं और केवल अमरोहा आपने स्थान दिया है और २ साल पहले निवासीयोंहीको नहीं किन्तु मुरादाबाद १५००)सहायता की थी और आपकी कह जिले भरके जैनियोंको धर्मलाभ पहुंचाने तीर्थोंपर धर्मशालाएं हैं जो रानीवालोंकी पर सदैव कटिबद्ध रहते हैं। आपके निवाधर्मशालाके नामसे मशहूर है। आपको ससे अमरोहामें जैनधर्मका एक चमत्कार८ पुत्र और ३ पुत्रियां हैं जिनमें ज्येष्ठ पुत्र सा फैल गया है । और जैन अजैनके चित्त क. रामस्वरुपजी एडवर्ड मीलके मैनेजींग पर जैनधर्मका महत्व भले प्रकार अंकित डिरेक्टर हैं। हो गया है । " जैनधर्मसरंक्षणीसभा" (अमरोहा) जो आजकल उत्तम कार्य कर (३३) पं. बीहारीलालजी- अमरोहा । रही है, आपनेही स्थापित की है और (मुरादाबाद):-आप वैश्य अग्रवाल जैन __ आपही उनके सभापति हैं । इनके अतिरिक्त दि. बुलन्दशहरी और अमरोहामें गवर्नमेन्ट हाईस्कूलमें मास्टर हैं । आपने सन् पाठशालाका खुलना, दौलारी ग्राममें न वीन मन्दिर बनजाना आदि कार्य इन्हीं १८९७से १९०५ तक "दिल-आराम" नामका एक उर्दू मासिक पत्र निकाला था । महोदयके उद्योगका फल है । आप चिरायू होकर इससेभी ज्यादे धर्मकार्य करते रहें। जिसमें जैन वा अजैन पब्लिकके चित्तपर जैनधर्मकी संत्यता, प्राचीनता और उसके (३४) मिथ्यात्वतिमिरनाशनी दि. जैन महत्वको अंकित करनेवाले बड़े उत्तम२ सभा, देहली:--धर्मपुरामें इस सभाकी सर्वजनोपयोगी लेख निकलते थे । इन्होंने स्थापना हुए ६ वर्ष हो गये। इसका मुअनमोलमोती, हनुमानचरित्र नोवेल ख्य उद्देश मिथ्यात्वको दूर कराकर सुधर्म संपादन करके चाणाक्यनीतिदर्पण, भर्थरी और सुरीतिकी ओर आकर्षित करना है । और जैनवैराग्यशतकका अनुवाद करनेके जो प्राचीन प्रथा धर्मविरुद्ध हो उसको अतिरिक्त उर्दूभाषामें कईएक जैनधर्म- खोद फेंकनेका यत्न करती है । इतने उद्योतक तथा वैद्यकके भी ग्रन्थ, समयमें इतना परिवर्तन तो अवश्य हुआ उपन्यास वा नाटकरुपमें २०-२५ रचकर है कि जो विवाह सनातन बैश्नव और निजव्ययसे प्रकाशित कराकर सर्वसा- रीतिसे होते थे उनमें समिसे ६०
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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